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Narendra Modi

 

नरेन्द्र मोदी की न कोई चाल है, न चेहरा, और न चरित्र। गोधरा में ट्रेन की बोगी में आग लगने के बाद सुनियोजित दंगे कराकर अपनी वहशियाना सोच और मानसिकता की झलक दिखा चुके इस कथित राजनेता को एक ऐसा रंगा सियार माना जाता है, जो सांप्रदायिक हिंसा भड़काने में भी उतना ही सिद्धहस्त है, जितना भ्रष्टाचार करने में। एक लाख करोड़ से भी ज्यादा के घोटालों और हजारों बेगुनाहों के खून का गुनाहगार नरेन्द्र मोदी गुजरात की राजनीति का ऐसा स्वयंभू आका है, जिसमें न मानवता है, न संस्कार, न ही संवेदना। राज्य में कहने भर को भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, वर्ना यहां न कोई सत्ता है, और न विपक्ष, सिर्फ मोदी की ही तूती बोलती है। हीनताओं से भरे निष्ठुर और निर्मम नरेन्द्र मोदी जिसने अपनी ही धर्मपत्नी यशोदा को दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ रखा है। पति से उत्पीड़ित यह महिला सुदूर गांव के एक स्कूल में मामूली टीचर की नौकरी करके किन तकलीफों और अभावों के बीच जिंदगी गुजार रही है, उसे देखने के बाद इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि नरेन्द्र मोदी में इंसानी वेश में इंसान नहीं, हैवान बसता है, जिसका न कोई दीन है, न कोई ईमान। गुजरात में सुनियोजित ढंग से नरसंहार करने वाले मोदी के हाथ सिर्फ निर्दोष लोगां के खून से नहीं रंगे हैं, बल्कि इस आततायी ने अपने गलीज स्वार्थों की खातिर अपनी ही पार्टी के नेताओं की जान लेने का संगीन गुनाह भी किया है।

आरोप है कि अक्षरधाम मंदिर में आतंकवादी हमले का फर्जीवाड़ा करने वाले नरेन्द्र मोदी ने जब षड़यंत्र खुलने का खौफ महसूस किया तो अपनी ही पार्टी के हरेन पंड्या को मौत के घाट उतारने से भी गुरेज नहीं किया। फर्जी सीडी बनवाकर भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय संगठन महामंत्री संजय जोशी का राजनैतिक वजूद समाप्त करने के दुष्प्रयास का घटिया कारनामा भी नरेन्द्र मोदी ने ही अंजाम दिया था, और जब भेद खुलता नजर आया तो वह फर्जी सीडी में इस्तेमाल किए गए सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी को फर्जी एनकांउटर में मरवाने का कुकृत्य करने में भी नही चूका। सत्ता, प्रशासन से लेकर विधानसभा में अपनी निरंकुशता स्थापित करने वाले नरेन्द्र मोदी ही है, जिनकी मर्जी के खिलाफ सत्ता पक्ष तो दूर, विपक्ष के विधायक भी खिलाफत नहीं कर पाते, और वादों की तरह खाली प्रश्नावली पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होते हैं। मोदी वह चालाक और फितरती शख्सियत है जिसने महज अपनी सियासत जमाने के लिए खुद अपनी ही पार्टी भाजपा की जमीन हिलाने तक से परहेज नहीं बरता। कभी गुजरात के आरएसएस भवन में चाय-नाश्ता बनाने वाला यही शख्स है, जिसने अपनी कुत्सित महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की खातिर गुजरात भारतीय जनता पार्टी के ३ शीर्ष नेताओं, जिनमें तत्कालीन मुख्यमंत्री सुरेश मेहता, शंकर सिंह बाघेला, और केशुभाई पटेल शामिल थे, के बीच दूरिया पैदा कराई और गुजरात भाजपा को तोड़ने का सफल कुचक्र रचकर खुद को इस राज्य का पहला अनिर्वाचित मुख्यमंत्री बना दिया। समूची पार्टी को अपने हाथों की कठपुतली समझने वाले इस पार्टी भंजक ने न तो कभी भाजपा के शीर्ष पुरूष लालकृष्ण आडवाणी को अपमानित करने का मौका छोड़ा और ना ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को चुनौती देने और इसके कर्ता-धर्ताओं को नीचा दिखाने का। अपने-अपने राज्यों का स्वयंभू क्षत्रप बनकर वसुंधरा राजे सिंधिया और येदियुरप्पा ने भाजपा की नाक में दम कर रखा है लेकिन नरेन्द्र मोदी ने तो गुजरात में पार्टी का वजूद ही खुद में समेट लिया है। घटियापन की पराकाष्ठा पार करते हुए मोदी ने गुजरात में भाजपा को लगभग समाप्त कर दिया है।

आज इस राज्य में भाजपा नहीं, -मोदी बिग्रेड- का शासन है जो अपने आका, यानि नरेन्द्र मोदी का ही गाती है और उन्हीं का बजाती है। नितिन गड़करी हों या लालकृष्ण आडवाणी या पार्टी अथवा संघ का कोई भी तीर-तुर्रम, गुजरात में मोदी के आगे झाड-झंखाड से ज्यादा औकात नहीं रखता है। नापाक षड्यंत्र रचने के बावजूद जब संजय जोशी बेदाग साबित हुए और नितिन गड़करी ने उन्हें पार्टी में वापस लाने की पहल की तो नरेन्द्र मोदी ही थे जो अजगर की तरह फंुफकारे और इससे सहमी पार्टी को रातो-रात संजय जोशी से कार्यकारिणी सदस्य पद से इस्तीफा लेने को मजबूर होना पड़ा। यह मोदी की कुटिल रणनीति का ही परिणाम है जो एनडीए का वजूद बनाए रखने की तमाम मजबूरियों के बावजूद भाजपा नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने का छद्म प्रचार झेलने के लिए अभिशप्त है, क्योंकि भाजपा और संघ, दोनों को अपनी मर्जी से नचाने में सफल भाजपा का यह कुटिल चेहरा अपनी चालाकियों के बूते आज इतनी ताकत हासिल कर चुका है कि भाजपा और संघ महज गुजरात में ही उनके रहमो-करम पर आश्रित नहीं रह गए हैं, बल्कि नरेन्द्र मोदी के आगे इस कदर मजबूर हो गए हैं कि उनके तमाम षड्यत्रों और नापाक इरादों को अच्छी तरह भांप लेने के बावजूद जय-जयकार करने को विवश है, क्योंकि संघ का पाला-पोसा यह शख्स आज अपने राज्य में ही नहीं, राज्य के बाहर भी भाजपा को छिन्न-भिन्न और विघटित करने की ताकत अर्जित कर चुका है

। जो शख्स ताकत हासिल करने के लिए रातो-रात हजारों की लाशें बिछाने की साजिश रच सकता है,वह ऐसा कब दोबारा कर गुजरे, इस बात का किसी को भरोसा नहीं है। नरेन्द्र मोदी के तमाम कुकर्मो के बावजूद भाजपा सन् २००२ के कलंकों से मुक्त रहने में काफी हद तक सफल जरूर रही है किन्तु सब जानते हैं कि मोदी ने अपनी नापाक करतूत अगर भूले से भी दोहरा दी तो भाजपा की छवि तार-तार हुए बगैर नहीं रहेगी यह असंभव नहीं, भाजपा इसीलिए नरेन्द्र मोदी से भयभीत है और न चाहते हुए भी उनकी मनमर्जी झेलने के लिए मजबूर हैं। इस अदनी शख्सियत के आगे लालकृष्ण आडवाणी, नितिन गड़करी से लेकर संघ के तमाम कर्ता-धर्ता जिस प्रकार निरूपाय है, असहाय है उससे भाजपा और संघ की तमाम मजबूरियां खुलकर सामने आ जाती हैं। इसका एक कारण यह भी है कि मोदी के कार्पोरेट जगत से संबंध है और चुनाव में यह लोग अरबो-खरबो रूपए की फंडिंग कर सकते है। 

 

नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने तक की कहानी जितनी सनसनी से भरी है उससे भी ज्यादा लोमहर्षक है, उनके सत्ता संभालने से लेकर अब तक के वृतांत नरेन्द्र मोदी को कभी मानसिक दिवालिया, तो कभी आततायी या दिमागी संतुलन खो बैठा एक उन्मादग्रस्त सिरफिरा घोषित करते हैं। मुख्यमंत्री बनने से पहले नरेन्द्र मोदी एक ऐसे शातिर और मौकापरस्त नेता के रूप में पहचाने जाते थे, जिनका एकमात्र ध्येय मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाना है, और अपना यह मकसद पूरा होते ही उन्होंने अपनी नापाक सोच का परिचय देना शुरू कर दिया है। नरेन्द्र मोदी ने गोधरा की दुर्घटना के बाद आक्रोशित कारसेवकों द्वारा की गई पिटाई के प्रतिशोध में गुजरात दंगों का जो सुनियोजित नाटक रचा, उसकी सच्चाई सबके सामने है। मोदी की इस क्रूर करनी का ही फल है जो बाहर से चमचमाता दिखाई देने वाला गुजरात अपने अंदर एक ऐसे घटाघोप अंधेरे को छिपाए कसमसा रहा है, जिसमें रोशनी की कोई किरण फूटती नजर नहीं आती है।

बीते १० सालों में भारत का विकसित माने जाने वाला यह राज्य जिस एकतंत्रीय स्वेच्छाचारी, अविनायकवादी, निरंकुश और मनो-विक्षिप्त नेतृत्व में छटपटा रहा, उसी का नाम है नरेन्द्र मोदी, जिसने अपने वहशीपन, क्रूरता, मानसिक दिवालिएपन, अवसरवादिता और अनुशासन से मुक्त स्वेच्छा चरिता से न सिर्फ गुजरात के लोगों के मानवाधिकारों को कुचला है, वरन अपनी ही पार्टी के वजूद को छिन्न-भिन्न करने का कु-षड्यंत्र भी रचा है। कामकाज की निरंकुश शैली दिखाते हुए नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद से ही उन नेताओं और कार्यकर्ताओं को बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया, जो उनके आदेश का पालन नहीं करते थे। केन्द्रीय मंत्री रहे स्व. काशीराम राणा और डॉ. वल्लभ भाई कठारिया का राजनीतिक कैरियर सिमटने के पीछे भी वही हैं तो पार्टी में रहते हुए विद्रोही तेवर अख्तियार करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल सहित सुरेशभाई मेहता, एके पटेल, नलिन भट्ट और गोरधन झडपिया जैसे कद्दावर नेताओं को भाजपा से दूर करने का कलंक भी नरेन्द्र मोदी के ही माथे पर है।

गुजरात में भाजपा के तमाम बड़े नेताओं को पार्टी से दूर करने का ही परिणाम है जो केशुभाई मेहता के नेतृत्व वाली गुजरात परिवर्तन पार्टी (जीपीपी) आगामी चुनावों में भाजपा को गंभीर चुनौती देती नजर आ रही है। लोकतंत्र को मजाक समझने वाले नरेन्द्र मोदी ना तो संविधान को अपनी सोच से ऊपर समझते है और ना ही शासन-प्रशासन के स्थापित मूल्यों की कोई परवाह करते हैं। विधायकों के प्रश्न पूछने के अधिकारों को अपनी बपौती समझने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए न राज्य में मानव अधिकार आयोग के कोई मायने हैं, न पीड़ितों के दुख-दर्द कोई औकात रखते हैं। गुजरात के भयानक दंगों का षड्यंत्र रचने वाले इस निर्दयी और आततायी शख्स ने क्रूर अमानवीयता का परिचय देते हुए दंगों के पीड़ितों के लिए बने राहत शिविरों को बच्चे पैदा करने वाली फैक्ट्रियां‘ कहकर यह जताया कि उनके लिए पीडित मानवता के दुख-दर्द कोई अहमियत नहीं रखते हैं। खतरा बनेंगे वाघेला, सुरेश मेहता, झड़पिया, केशु, जोशी और तोगड़िया…? गुजरात के विधानसभा चुनाव आसन्न हैं और नरेन्द्र मोदी बीते ११ सालों के दौरान पहली बार ऐसी कड़ी चुनौती महसूस कर रहे हैं, जो पहले कभी नहीं रही।

गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाकर उनके खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं। गोंवर्धन झड़पिया भी उनके साथ है। मोदी के चिर-प्रतिद्वंद्वी शंकर सिंह वाघेला कांग्रेस की वापसी के लिए मोदी को उखाड़ फेंकने के लिए प्रतिबद्ध हैं वही राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किए गए संजय जोशी भी मोदी की जड हिलाने से नही चूकेगे मोदी की एक बड़ी चिंता प्रवीण तोगड़िया हैं जो नरेन्द्र मोदी से बुरी तरह नाराज हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि गुजरात दंगों में फंसे विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को मुकदमों से निपटने में मोदी कोई मदद नही कर रहे हैं।
शंकर सिंह वाघेला
गुजरात कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में शुमार किए जाने वाले शंकर सिंह वाघेला कभी भाजपा के भी कद्दावर नेता रहे हैं। तेजतर्राट वाघेला के बारे में पत्रकार भरत देसाई के हवाले से बीबीसी ने लिखा था कि -वाघेला कांग्रेस में एकमात्र ऐसे नेता है जो मोदी और भाजपा को कमर से नीचे मार सकते हैं। केशुभाई पटेल के मुख्यमंत्रित्व काल के समय वाघेला ने नरेन्द्र मोदी के बढ़ते प्रभाव के विरोध में व्रिदोह कर दिया था। मोदी और वाघेला की दुश्मनी तभी से चली आ रही है।
गोवर्धन झड़पिया
पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी की तरफ से आगामी विधानसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी को पटखनी देने की तैयारी कर रहे झड़पिया सन् २००२ में नरेन्द्र मोदी की केबिनेट में गृह राज्यमंत्री थे। दूसरे कार्यकाल में मोदी ने उन्हें नहीं लिया, जिसका बदला झड़पिया ने तब लिया जब मंत्रिमण्डल विस्तार के दौरान मंत्री पद के लिए उनका नाम पुकारा गया। गोवर्धन झड़पिया उठे और भरी सभा में यह कहते हुए शपथ लेने से इनकार कर दिया कि उनके लिए मोदी के साथ काम करना अंसभव है।
केशुभाई पटेल
गुजरात के ८४ वर्षीय केशुभाई नरेन्द्र मोदी और सत्ता के बीच दीवार बनने की कोशिशें कर रहे हैं। उनकी कोशिश है कि पटेल समुदाय के वोटों की दम पर नरेन्द्र मोदी को हराया जाए। मोदी की लंबे समय से खिलाफत कर रहे केशुभाई के बारे में माना जा रहा है कि वे चुनावों में वोट जमकर काटेंगे और भाग्य ने साथ दिया तो किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो वे भाजपा को मोदी को हटाने की शर्त पर ही समर्थन देंगे।
संजय जोशी
एक जमाने में करीबी दोस्त माने जाने वाले संजय जोशी और नरेन्द्र मोदी आज जानी दुश्मन के रूप में मशहूर हैं। चुनाव सन्निकट हैं और संजय जोशी भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निकाले जाने का बदला लेने पर आमादा नजर आते हैं। कभी दोस्त रहे मोदी और जोशी के बीच खुन्नस की शुरूआत तब हुई जब केशुभाई भाजपा में रहते हुए मोदी से लड़ रहे थे और जोशी पटेल के समर्थन में खडे थे।

प्रवीण तोगड़िया 
प्रवीण तोगड़िया और नरेन्द्र मोदी के बीच में यह माना जाता है कि आजकल उनके बीच बोलचाल तक नहीं है। तोगड़िया यह मानते हुए नरेन्द्र मोदी से दूर हुए बताए जाते हैं कि दंगों के बाद मोदी ने विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को उनके हाल पर छोड़ दिया, यहां तक कि मुकदमों में भी उनकी मदद नहीं की। इस कारण विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के नेता-कार्यकर्ता चुनावों में मोदी के खिलाफ जा सकते हैं।
सुरेश मेहता 
सुरेश मेहता गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि ये बड़े कुशल प्रशासक है। ये जज रह चुके हैं। और इन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर राजनीति में कदम रखा था। सुरेश मेहता कच्छ क्षेत्र के कद्दावर नेताओं में से माने जाते हैं। नरेन्द्र मोदी से सैद्धांतिक मुद्दों पर विरोध के चलते मोदी ने गुजरात में इनका राजनैतिक जीवन हाशिए पर ला कर खड़ा कर दिया है। लेकिन इस बार के विधानसभा चुनावों में सुरेश मेहता पूरे जोर-शोर से मोदी को पटखनी देने की तैयारी में है।
नरेन्द्र मोदी का दामन गुजरात दंगों की आड़ में हुए नरसंहार में हजारों हत्याओं के खून से सना है वहीं एक लाख करोड़ रूपए से भी ज्यादा के घोटालों की कालिख उनके चेहरे पर है। मोदी ने मुख्यमंत्री रहते हुए कौड़ियों के भाव पर जमीनें बड़े उद्योगपति ग्रुपों को देकर अनाप-शनाप पैसा कमाया वहीं विभिन्न सौदों में सैकड़ों करोड रूपए की दलाली करके भी अपनी काली तिजोरियां भरीं हैं। ऊर्जा, गैस रिफायनरी, गैस उत्खनन, पोषण आहार, पशुचारा, जमीन आवंटन, मछली पकड़ने की नीलामी आदि, विभिन्न योजनाओं के नाम पर नरेन्द्र मोदी और उनके मंत्रियों ने मनमर्जी से फर्जीवाड़ा किया, नियम कानून ताक पर रखे और खूब घपले-घोटाले किए। मुख्यमंत्री द्वारा बड़े पैमाने पर किए गए इस भ्रष्टाचार ने गुजरात की अर्थव्यवस्था को तो गंभीर नुकसान पहुंचाया ही हैं साथ ही , प्राकृतिक संसाधनों की भी गंभीर क्षति हुई है।
 नैनो के लिए ३३ हजार करोड़ दांव पर टाटा मोटर्स लिमिटेड द्वारा सानंद (अहमदाबाद) में स्थापित नैनो कार का प्रोजेक्ट गुजरात की मोदी सरकार द्वारा किए गए असीमित भ्रष्टाचार का एक बड़ा उदाहरण है, जिससे गुजरात को ३३ हजार करोड़ से भी ज्यादा का घाटा हुआ। प्रारंभ में यह प्रोजेक्ट सिंगुर (पं. बंगाल) में स्थापित किया गया था लेकिन तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बैनर्जी (वर्तमान में पं. बंगाल की मुख्यमंत्री) के प्रबल विरोध के चलते प्रोजेक्ट खतरे में आ गया। मौका भांपते हुए नरेन्द्र मोदी ने टाटा मोटर्स से गुप्त डील की। जाहिर तौर पर वे यह कहते रहे कि नैनों कार प्रोजेक्ट के लिए पहल करके वे गुजरात की समृद्धि के द्वार खोल रहे हैं, किन्तु वस्तुस्थिति यह थी कि इस प्रोजेक्ट की आड़ में मोदी हजारों करोड़ रूपए का खेल खेलना चाहते थे, जिसमें वे सफल भी हुए। यह भी किसी से छिपा नही रह गया है कि मोदी और टाटा के बीच हुई नापाक डील में नीरा राडिया ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी। इस डील के तहत गुजरात सरकार ने टाटा मोटर्स लिमिटेड को नैनों कार प्रोजेक्ट सिंगूर (पं. बंगाल) से सानंद (गुजरात) लाने के लिए ७०० करोड़ रूपए दिए। पूरे प्रोजेक्ट की कीमत अब २९०० करोड़ रूपए हो गई थी। इस प्रोजेक्ट में टाटा मोटर्स को ११०० एकड जमीन ९०० रूपए स्क्वेयर मीटर के हिसाब से दी गई और मात्र ४०० करोड रूपए ही टाटा मोटर्स से लिए गए जबकि उस समय इस जमीन की कीमत ४००० रूपए प्रति स्क्वेयर मीटर थी, जो अब ७०० रूपए प्रति स्क्वेयर मीटर हो गई है। इतनी कम कीमत में जमीन टाटा मोटर्स को उस करोड़ों की रकम की एवज में दी गई, जो मोदी तथा उनके मंत्रियों की तिजोरियों में जानी थी। नापाक आर्थिक षड्यंत्र यहीं नहीं थमा। टाटा मोटर्स की आर्थिक सहूलियत को ध्यान में रखते हुए उस पर जहां ५० करोड रूपए प्रति छह माह में देने की इनायत की गई, वहीं जमीन के स्थानांतरण के लिए भी टाटा को तनिक भी इंतजार नहीं करना पड़ा। ऐसा तब, जबकि टाटा को दी हुई यह जमीन वहां वेटनरी विश्व विद्यालय के लिए आरक्षित थी।
बेपनाह कर्जा, मामूली शर्तें
टाटा मोटर्स पर इनायतों की बौछार केवल जमीन आवंटन में ही नहीं हुई। कंपनी की कुल प्रोजेक्ट लागत २९०० करोड रूपए थी, जिस पर गुजरात सरकार द्वारा ३३० प्रतिशत ऋण ०.१० प्रतिशत ब्याज के तौर पर दिए गए। यह राशि कुल ९७५० करोड़ बैठती है। यही नहीं, इस ऋण की पहली किश्त टाटा मोटर्स को २० साल बाद प्रारंभ होगी। दुनिया की कोई भी सरकार किसी कम्पनी को प्रोजेक्ट लागत की ७० से ८० प्रतिशत राशि भी नहीं देती है लेकिन मोदी सरकार ने पूरे ९७५० करोड़ रूपए दे दिए? यह तो मोदी ही बता सकते हैं कि इस राशि में कितना पैसा उन्होंने कमाया और कितना पैसा मंत्रियों के घर गया। इतने पर ही नहीं रूके मोदी, उन्होंने टाटा मोटर्स को स्टांप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन चार्ज और अन्य सभी ड्यूटियों से भी पूरी छूट दे दी। गुजरात के हितों का दावा करते नहीं थकने वाले मोदी ने टाटा मोटर्स पर तब भी इनायतों का खजाना लुटाना जारी रखा जब उसने प्रोजेक्ट में राज्य के ८५ प्रतिशत लोगांे को रोजगार देने का सरकारी आग्रह ठुकरा दिया।
ये मेहरबानियां भी हुईं
टाटा मोटर्स के लिए दूषित जल उत्पादन और खतरनाक क्षय निष्पादन प्लांट भी सरकार बनाकर देगी।
अहमदाबाद शहर के पास १०० एकड़ जमीन टाटा मोटर्स के कर्मचारियों के लिए आंवटित की।

 

रेल्वे कनेक्टिविटी और प्राकृतिक गैस की पाइप लाइन भी सरकार बिछा रही है
टाटा मोटर्स को २२० केवीए की पावर सप्लाई डबल सर्किटेड फीडर स्थापित करने की अनुमति दी गई। इसके लिए बिजली    शुल्क भी माफ कर दिया गया।
टाटा मोटर्स को मनमर्जी भूमिगत जल निकालने की अनुमति दी गई जो लगभग १४००० क्यूबीक मीटर जल बैठती है। आसपास के किसान भूमिगत जल न निकाल सकें, ऐसी पाबंदी लगा दी गई।
किसानों को नए बिजली के मीटर लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
इस तरह मोदी सरकार ने टाटा मोटर्स को मनमर्जी इनायतें बख्शीं, जिनका कुल आंकड़ा ३३ हजार करोड़ रूपए से भी ज्यादा बैठता है। यह सब गुजरात के विकास के लिए नहीं, मोदी और उनके भ्रष्ट मंत्रियों को अकूत कमाई दिलाने के लिए हुआ है।
 अदानी को दान, १० हजार करोड़ का चूना
मोदी सरकार द्वारा अदानी ग्रुप को मुंद्रा पोर्ट और मुंद्रा स्पेशल इकोनामिक जोन के निर्माण के लिए जमीन आवंटन में सीधे-सीधे १० हजार करोड़ रूपए का लाभ पहुंचाया गया। ग्रुप को ३,८६,८३,०७९ स्क्वेयर मीटर जमीन का आवंटन वर्ष २००३-०४ में किया गया था। इस जमीन के बदले कंपनी ने ४६,०३,१६,९२ रूपए कीमत चुकाई। हैरानी की बात तो यह है कि इसके लिए सरकारी कीमत १ रूपए से ३२ रूपये प्रति स्क्वेयर मीटर रखी गई लेकिन ज्यादातर जमीनें १ रूपए प्रति स्क्वेयर मीटर के हिसाब से ही दे दी गई। इस जमीन का सीमांकन करके इसको कुछ हजार स्क्वेयर मीटर के छोटे प्लाटों में कुछ पब्लिक सेक्टर कम्पनियों को ८०० से १० हजार रूपए प्रति स्क्वेयर मीटर में अलाट कर दिया गया। नियमों के उल्लंघन का आलम यह रहा कि सीमांकित जमीन में सड़क को छोडकर कोई भी योजना मानचित्र पर नहीं दर्शाई गई जबकि सड़क की योजना के लिए किसी भी अधिकृत जमीन का १६ से २२ प्रतिशत हिस्सा रिहायशी इलाके के लिए छोड़े जाने का नियम है। सड़कों का क्षेत्रफल लगभग १० प्रतिशत आता है जबकि दिए गए प्लाटों का क्षेत्रफल हजारों स्क्वेयर मीटर में आता है। सड़कों की योजना के लिए १०० प्रतिशत से ज्यादा, मूल्य रखने का कोई औचित्य नजर नहीं आता। अदानी ग्रुप ने जो जमीन १ रूपए स्क्वेयर मीटर से ३२ रूपए स्क्वेयर मीटर में अधिग्रहित की, वह ज्यादा से ज्यादा ३ रूपए स्क्वेयर मीटर से ३५ रूपए स्क्वेयर मीटर तक पहुंच सकती थी, अगर सड़कों का मूल्य भी इसमें जोडा जाए, लेकिन अदानी ग्रुप ने यही जमीन ८०० रूपए स्क्वेयर मीटर से लेकर १०००० रूपए स्क्वेयर मीटर के मूल्य में दूसरी कम्पनियों को बेची। इससे सरकार के खजाने को करीब १० हजार करोड़ रूपए का नुकसान साफ दर्ज होता है।
छतराला ग्रुप पर मेहरबानी और नवसारी कृषि विश्वविद्यालय की जमीन पर किया कब्जा  
नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा उपकृत कम्पनियों में छतराला ग्रुप भी है जिसे नवसारी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की प्राइम लोकेशन की जमीन बगैर नीलामी प्रक्रिया के ७ स्टार होटल बनाने के लिए दे दी गई। सूरत शहर की यह जमीन वहां के किसानों ने एक बीज फार्म की स्थापना के लिए १०८ साल पहले दान की थी। यहां पर बहुत ही उन्नत बीज फार्म बनाया गया, जहां कई रिसर्च प्रोजेक्ट चलते थे। देश के चुनिंदा रिसर्च सेंटरों में गिने जाने वाले इस फार्म की जमीन सूरत शहर की प्राइम लोकेशन की प्रापर्टी थी, जिसका मालिकाना हक नवसारी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के पास था। इस जमीन को छतराला ग्रुप के हवाले करने के लिए नरेन्द्र मोदी ने षड्यंत्र रचा। इसके तहत ग्रुप ने मुख्यमंत्री से सूरत में ७ स्टार होटल बनाने के लिए जमीन की मांग की, जिस पर मोदी ने जिला कलेक्टर को आदेश दिया कि इस ग्रुप को सूरत की चुनिंदा जगह दिखाई जाएं। कलेक्टर ने चार जगह दिखाईं लेकिन ग्रुप को इनमें से कोई पसंद नहीं आई, क्योंकि उसकी नजरें नवसारी की जमीन पर पड़ी थीं। इसी के चलते ग्रुप ने बीज फार्म की प्राइम लोकेशन को अपने होटल के लिए उपयुक्त बताया। कलेक्टर  ने इस पर जवाब दिया कि यह जमीन हमारे अण्डर में नहीं आती, इसके लिए कृषि विभाग से सम्पर्क करना पड़ेगा। छतराला ग्रुप ने इस बात के लिये नरेन्द्र मोदी से सम्पर्क साधा, जिन्होंने कृषि विभाग को निर्देश दिया कि जमीन ग्रुप को देने के लिए आवश्यक कार्यवाही की जाए। मुख्यमंत्री के आदेश के पाबंद कृषि विभाग के अफसरों ने देरी नहीं लगाई। राजस्व विभाग को इस बाबत निर्देशित किया गया जिसके अधिकारियों ने यह कहा कि यूनिवर्सिटी को जमीन बिना कोन-करेंस के दी गई थी, इसलिए इसे वापस लिया जाता है। इतना ही नहीं जमीन की कीमत में भी भारी धांधली की गई। इस जमीन का कुल क्षेत्र फल ६५ हजार स्क्वेयर मीटर था, जिसका रेट महज १५ हजार रूपए प्रति स्क्वेयर मीटर बताया गया। ऐसा तब, जबकि सूरत नगर निगम इसका रेट ४४ हजार रूपए प्रति स्क्वेयर मीटर बता रही थी। प्रमुख सचिव, राजस्व विभाग ने इस कीमत को खारिज कर दिया और छतराला ग्रुप को यह बेशकीमती जमीन मिट्टी के मोल मिल गई। जमीन से जुड़े सारे कृषक इस सौदे के खिलाफ कोर्ट में चले गए है और कहा कि अगर इस जमीन की सार्वजनिक नीलामी कराई जाए तो इसका रेट एक लाख रूपए प्रति स्क्वेयर मीटर आएगा। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दे दिया है लेकिन सार्वजनिक नीलामी पर कोई फैसला नहीं लिया गया, बस जमीन की कीमत १५ हजार से बढ़ाकर ३५ हजार रूपए प्रति स्क्वेयर मीटर कर दी गई। यह दर बाजार कीमत का एक तिहाई ही थी। यानी ६५० करोड़ रूपए आए होते यदि जमीन बाजार भाव पर बेची जाती लेकिन सरकार को महज २२४ करोड मिले। यहां उल्लेखनीय है कि नवसारी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी इस सौदे के पूरी तरह खिलाफ थी। यही जमीन सूरत नगर निगम भी अपने वाटर सप्लाई प्रोजेक्ट के लिए मांग चुका था, लेकिन सरकार ने सिर्फ छतराला ग्रुप पर मेहरबानी की। ऐसा इसलिए क्योंकि इस सौदे में मोदी और उनके मंत्रियों को बेशुमार पैसा मिल रहा था।
नमक रसायन कम्पनी घोटाला, गुजरात सरकार ने आर्चियन केमीकल्स कम्पनी को जमीन पाकिस्तान सीमा के पास आवंटित की नरेन्द्र मोदी के कहने से आर्चियन कैमिकल्स को २४, ०२१ हेक्टेयर और २६,७४६ एकड जमीन सोलारिस वेअर-टेक को १५० रूपये प्रति हेक्टेयर   प्रति साल की दर पर पट्टे पर दे दी। ये जमीने पाकिस्तान सीमा के काफी करीब है।  यह जमीने (नो मेन लेड अंर्तराष्ट्रीय बार्डर के पास है) यह मामला इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला है इसके लिये कम्पनियों के मालिकों ने गुजरात सरकार के संरक्षण में नकली पेपर बनवाये जिससे इन कम्पनियों से करार हुआ। इनका मकसद नमक आधारित रसायन बनाना है। जो कि आयात सामग्री है। मोदी सरकार अब देश के सुरक्षा तंत्र को खतरे में डालकर किसका भला कर रही है ये साफ-साफ दिखाई देता है।
इस मामले में गुजरात हाई कोर्ट सारे आवंटन रद्द कर चुकी है। इन कम्पनियों के मालिकों ने यह भी कहा की इस सामग्री के आयात से प्रदेश के साथ-साथ देश को भी फायदा होगा और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा भी आयेगी।इस पूरे खेल के पीछे की चाल का जिम्मा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के कंधे पर ही था। सन् २००४ में नरेन्द्र मोदी अपने ही पार्टी के लोगों की खिलाफत झेल रहे थे। उस वक्त वैकेया नायडू अखिल भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष थे। नरेन्द्र मोदी ने पार्टी में अपना वर्चस्व बढ़ाने के उद्देश्य से वैकैया नायडू को उपकृत करने का निर्णय लिया।
कहा जाता है जिन कंपनियों को कच्छ जिले के कोस्टल एरिया में जमीन आवंटित करी गई थी। उनमें से एक कंपनी में अप्रत्यक्ष रूप से वैंकैया नायूड की हिस्सेदारी थी और इसलिए मोदी ने नायडू की कंपनी को वहां जमीन आवंटित  करी।
गुजरात सरकार  को बनाया सबसे ज्यादा प्रदूषण वाला राज्य,
वन क्षेत्र की जमीन एस्सार ग्रुप को ६२२८ करोड का घोटाला 
एस्सार. ग्रुप नरेन्द्र मोदी की अनुग्रह प्राप्त कम्पनी है। एस्सार को गुजरात सरकार ने २,०७,६०,००० वर्ग मीटर जमीन आवंटित कर दी जिसमें से काफी जमीन का हिस्सा (कोस्टल  रेगुलेशन जोन) (सी.आर.जेड) और वन क्षेत्र में आता है। माननीय सुप्रीम कोर्ट के नियम अनुसार कोई भी विकास कार्य या निर्माण कार्य (सी.आर.जेड) और वन क्षेत्र की जमीन के ऊपर नहीं हो सकता और गुजरात सरकार ने ये जमीन कौडी के दाम पर एस्सार ग्रुप को दी।
जो जमीन एस्सार ग्रुप को आवंटित की गई है वो वन की जमीन है और इसी कारण डिप्टी-संरक्षक, वन क्षेत्र के खिलाफ वन अपराध दर्ज किया गया। भारतीय वन अधिनियम १९२७ के अन्तर्गत चार अलग-अलग तरह के अपराध भी दर्ज किए गए और २० लाख रूपये का जुर्माना भी किया गया और इस वन क्षेत्र की जमीन पर जो गैर कानूनी  निर्माण कराया गया उसे तत्काल तोड़ने के लिए कहा गया और वो जमीन तत्काल वन विभाग को वापिस करने के लिए कही गयी। गौरतलब है आज इस जमीन की कीमत ३००० रूपये प्रतिवर्ग मीटर से अधिक है। इस कीमत के हिसाब से जमीन की अनुमानित कीमत होती है ६,२२८ करोड रूपये है। मोदी ने एस्सार ग्रुप पर कोई कार्यवाही नहीं होने दी और इस तरह गुजरात की प्राकृतिक सम्पदा का दोहन और प्रदेश के खजाने दोनों पर गहरी चोट करी है।
जहीरा (सूरत) में बिना निलामी के एल एण्ड टी को जमीन आवंटन का घोटाला 
लार्सन एड टुर्ब्रोे को भी मुख्यमंत्री कि विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त रही है। नरेन्द्र मोदी ने हजीरा में ८,००,००० वर्ग मीटर लार्सन एडड टुर्ब्रो कम्पनी को १ रूपये प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से दी। जबकि मात्र ८,५०,६०० वर्ग मीटर जमीन किसी और कम्पनी को ७०० रूपए प्रति वर्ग मीटर की दर से आवंटित करी गई। इस प्रकार नरेन्द्र मोदी ने ७६ करोड की जमीन लार्सन एण्ड टुर्ब्रो को मात्र ८० लाख रूपये  में दे डाली।
भारत होटल लिमिटेड को जमीन आवंटन और २०३ करोड का घोटाला
भारत होटल लिमिटेड को बिना नीलामी के सरखेज-गांधी नगर राजमार्ग पर जमीन का आवंटन कर दिया गया जिस जगह पर भारत होटल्स लिमिटेड को जमीन आवंटित की गई है व राज्य में सबसे कीमती जगहों में से एक है। भारत होटल लिमिटेड को २१३०० वर्गमीटर जमीन मात्र ४४२४ रूपये में दी गई। जबकि उसका वर्तमान बाजार मूल्य १ लाख रूपये प्रति वर्ग मीटर है। इस आवंटन से गुजरात के कोष को २०३ करोड़ का नुकसान हुआ है।
गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कार्पोरेशन को बिमारू बताकर बेचने की साजिश और पैसे हड़पने का खेल
जीएसपीसी लिमिटेड गुजरात राज्य की नवरत्न कम्पनी है जिसके पास प्राकृतिक गैस, तेल निकालने और अन्वेषण का करने का अधिकार है। ऐसा कहा जाता है यह कंपनी मिलियन क्यूबिक मीटर गैस रिजर्व ढूंढ कर गुजरात का भविष्य बदल सकती थी। जी.एस.पी.सी ने विभिन्न स्त्रोतो से ऋण लेकर ४९३३.५० करोड रूपये अपने अन्वेषण कार्य में निवेश किए थे। कंपनी ने ५१ घरेलू जोन के अन्वेषण के अधिकार प्राप्त किए जिसमें से कंपनी को सिर्फ १३ जोन मंे सकारात्मक परिणाम मिले इस बात को बहुत ज्यादा बढ़ाचढ़ा कर मीडिया में प्रस्तुत किया गया और नरेन्द्र मोदी ने अपनी वाहवाही बटोरते हुए जी.एस.पी.सी गुजरात को तेल उत्पादकता के मामले में देश में सर्वोच्च भी घोषित कर डाला। इन सारे धतकरमों के बाद पता चला कि ४९३३.५० करोड रूपये खर्च करने के बाद जी.एस.पी.सी ने मात्र २९० करोड का तेल उत्पादन किया है। इसके बाद जी.एस.पी.सी ने जीओ-ग्लोबल, मल्टी नेशनल कम्पनी के साथ गुपचुप करार किया उस करारनामें में क्या शर्ते और नियम थे ये अभी तक सवाल है। इन सबके पीछे जो चाल है वो ये है कि गुजरात में तेल और प्राकृतिक गैस के अकूत स्रोत  है लेकिन मोदी की मंशा ये है कि जानबूझकर कोई उत्पादकता ना दिखाकर इस कंपनी को बीमार बताकर इसको औने-पौने दामों में बेच कर हजारों करोड़ों रूपये कमा लिए जाए।
स्वान एनर्जी घोटाला 
गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कार्पोरेशन (जी.एस.पी.सी.) के पीपावाव पॉवर प्लांट के ४९ प्रतिशत शेयर स्वान एनर्जी को बिना टेंडर बुलाए दे दिए। इस मामले में भी पारदर्शिता नहीं रखी गई है। कार्बन क्रेडिट जो कि क्वोटो प्रोटोकाल के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय स्कीम है जिसमें विकासशील देश अपने यहां ऊर्जा क्षेत्र में ग्रीन हाऊस गैसे कम करके कार्बन क्रेडिट कमाती है ओर उसे विकसित देश खरीदते है। ७० प्रतिशत पॉवर प्लांट के कार्बन केडिट भी दे दिए गए। इस घोटाले में स्वान एनर्जी को १२ हजार करोड़ का फायदा हुआ जबकि उसने केवल ३८० करोड़ पूंजी निवेश किया। इतनी बड़ा सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाकर नरेन्द्र मोदी ने अपनी जेब गरम कर ली है।
गुजरात स्टेट पॉवर कार्पोरेशन के स्वान एनर्जी घोटाले में पीपावव पॉवर स्टेशन ने इस पूरे मामले में स्वान एनर्जी ने मात्र ३८० करोड़ के निवेश के बदले में १२ हजार करोड़ का मुनाफा कमाया है। स्वान एनर्जी पॉवर क्षेत्र की बिलकुल नई और अनुभवहीन कंपनी थी। स्वान एनर्जी की यह डील मुख्यमंत्री निवास से ही शुरू हुई थी।
विभिन्न उद्योगों को गुजरात सरकार द्वारा प्रमुख शहरों के पास जमीन आवंटन का घोटाला 
गुजरात सरकार ने सन् २००३, २००५, २००७, २००९ और २०११ में निवेश सम्मेलन किया था। ज्यादातर कम्पनियों ने प्रमुख शहरों के पास जमीन मांगी जो कि बहुत ज्यादा महंगी थी। राज्य सरकार ने इन कम्पनियों को लाभ पहुंचाने के लिए औने-पौने दाम पर ये जमीने आवंटित कर दी जबकि इसकी नीलामी कि जानी थी। एक ओर नरेन्द्र मोदी इसी कारण केन्द्र के घोटालों कि सरकार के बारे में बोलते फिरते है पर जब अपने राज्य की बारी आई तो वही करते हैं। अगर इसकी समुचित जांच कराई गई तो एक बहुत बड़ा घोटाला सामने आने के पूरे संकेत है।
विभिन्न बांधों में मछली पकड़ने का अधिकार का आवंटन बिना किसी निलामी के
साधारणतया राज्य सरकार मछली पकड़ने का अधिकार बांधों पर निलामी के द्वारा देती हैं। पर साल २००८ में कृषि एवं मत्स्य पालन मंत्री ने यह अधिकार बिना नीलामी के ३८ बांधों में अपने मनचाहो को बॉट दिया वो भी ३,५३,७८०.०० रूपए में जो कि अनुमानित मूल्य से बहुत कम राशि है। इस पूरी भ्रष्ट कार्यवाही के विरूद्ध कई लोग कृषि एवं मत्स्य पालन मंत्री पुरूषोत्तम सोलंकी के खिलाफ हाई कोर्ट में चले गए। वहां से सोलंकी को जमकर फटकार मिली और आवंटन रद्द करने की सिफारिश भी की गई। इसके बाद राज्य सरकार ने निलामी के माध्यम से १५ करोड़ रूपए जुटाए।
इतना सब होने के बावजूद भी इस भ्रष्ट मंत्री को जो कि नरेन्द्र मोदी के चहेते भी है उनको मंत्री मंडल से हटाया नहीं गया। जब से नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने हैं। तबसे भ्रष्टाचारियों और बदमाशो को संरक्षण मिल गया है और सब साथ में मिलीभगत के साथ खा रहे हैं।
पशु चारा घोटाला 
गुजरात सरकार ने पशु चारा विभिन्न कम्पनियों से खरीदा। आमतौर पर इन खरीदी के लिए टेण्डर बुलाने पड़ते है। पर राज्य सरकार ने खरीदी में पारदर्शिता न रखते हुए सीधे कम्पनियों से चारा खरीद लिया । गौरतलब है कि जिस कम्पनी से चार खरीदा वह ब्लैक लिस्टेड कम्पनी है और ५ कि. ग्राम का चारा २४० रूपये में खरीदा। जबकि बाजार मूल्य ५ किलो चारे का १२० से १४० रूपये है। ९ करोड वास्तविक मूल्य से ज्यादा दिये गये। इस कृत्य को लेकर माननीय हाईकोर्ट ने विशेष दिवानी आवेदन नम्बर १०८७५-२०१० दर्ज किया गया। इसके बाद सरकार ने माना कि खरीदी में पारदर्शिता नही रखी गई। इसके बाद भी माननीय मंत्री जी दिलीप संघानी जो कि नरेन्द्र मोदी के काफी खास है उन पर कोई कार्यवाही नही की गई ना ही उन्हें मंत्री मण्डल से हटाया गया।
आंगन वाडी केन्द्रों पर पोषण आहार वितरण का ९२ करोड का घोटाला 
भारत सरकार की योजना के तहत गुजरात सरकार ने रेडी टू ईट (ईएफबीएफ) खाने के लिए टेंडर निकाला।
पांच अलग जोन के लिए चार कम्पनियों की बोली प्राप्त हुई थी। केवल एक कम्पनी केम्ब्रिज हेल्थकेयर ने पूरे ५ जोन के लिए प्रस्ताव भेजा जो कि ४०८.०० करोड रूपए का था। तीन प्रस्ताव मुरलीवाला एग्रो प्रायवेट लिमिटेड, सुरूची फूड प्रायवेट लिमिटेड ओर कोटा दाल मिल से प्राप्त हुए। जिसमें से सुरूचि फूड प्रायवेट लिमिटेड और कोटा दाल मिल्स सिस्टर कंर्सन बताई गई है सेंट्रल विजलेंस कमीश्नर के दिशा निर्देशों के अनुसार अगर टेंडर एक ही निविदाकार से प्राप्त हुए हैं तो टेंडर खारिज कर देना चाहिए जो इस प्रकरण में नहीं हुआ। केम्ब्रिज हेल्थकेयर जिसने सामग्री सबसे पहले और समय से पूर्व देने कि शर्त दी थी और उनकी निविदाएं योग्य भी थी तब भी (एल-१) लोवेस्ट-१ जिसकी सबसे कम बोली होते हुए भी ४०८.०० करोड की निविदाकार को अमान्य घोषित कर दिया एवं निविदा को अयोग्य घोषित कर दिया। निविदा बाकी बची तीनों कम्पनियों को दी गयी जो कि ५८८.८९ करोड रूपए बैठी और बातचीत कर टेंडर ५०० करोड रूपए में गया जो कि ९२ करोड़ रूपया ज्यादा था। अब ये पैसे किसकी झोली में गये ये तो नरेन्द्र मोदी ही बता सकते हैं।
सुजलाम सुफलाम योजना घोटाला 
मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने २००३  में सुजलाम सुफलाम योजना (एस.एस.वाय) की घोषणा चुनाव जीतने के मद्देनजर की थी। इस योजना का   बजट ६२३७.३३ करोड़ था।  इस योजना में उत्तरी गुजरात को पेयजल और कृषि के लिए पानी मुहैया कराया जाना था और २००५ तक योजना को लागू किया जाना चाहिए था। सुजलाम सुफलाम योजना (एस.एस.वाय)  के विभिन्न कार्यों के लिये गुजरात वॉटर रिसोर्स डेवलपमंेट कार्पोरेशन लिमिटेड (जी.डब्ल्यू.आर.डी.सी.) को २०६३.९६ करोड रूपये दिये गये। जिसके अनुसार सारे कार्य दिसम्बर २००५ तक खत्म हो जाने थे। मुख्यमंत्री ने ये सारा काम (जी.डब्ल्यू.आर.डी.सी.) को खुली निलामी और सी.ए.जी. की ऑडिट से बचाने के लिये दिया। करीब ११२७.६४ करोड सन् २००८ तक खर्च कर दिया गया था। पब्लिक अकाउंट कमेटी ने ५०० करोड रूपये का घोटाला दर्ज किया। सी.ए.जी. ने १६ पन्नों की रिपोर्ट दी। जिसमें आर्थिक अनियमितताएें दर्ज की गई थीं सी.ए.जी. की रिपोर्ट को सदन की पटल पर नहीं रखा गया। मामले को गरम होता देख नरेन्द्र मोदी ने (वाटर रिसोर्स सेकेट्री)  का तबादला किसी अन्य विभाग में कर दिया और इस पर तीन केबिनेट स्तर के अफसरो की कमेटी जॉच के लिये लगा दी जो सन् २००८ से अभी तक अपनी रिपोर्ट नहीं सौंप पाई है।
डीएलएफ को जमीन, २५३ करोड का घाटा
जमीन देने में ज्यादा ही उदारता बरतने वाले मोदी ने अनैतिक और नियम-विरूद्ध आवंटन की आड़ में कितने करोड रूपए कमाएं होंगे, इसका हिसाब करने में नोट गिनने की मशीनें भी शायद कोई जवाब न दे पाएं। गुजरात के इस महा-भ्रष्टाचारी ने उस रियल स्टेट कंपनी डीएलएफ को सैकड़ों करोड़ रूपए का अनुचित लाभ पहंुचाया है, जिसके साथ इन दिनों सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका गांधी के पति राबर्ट वाड्रा, का नाम सुर्खियों में है। डीएलएफ को गांधीनगर में नरेन्द्र मोदी द्वारा सन् २००७ में जो जमीन दी गई थी, वह एक लाख स्क्वेयर मीटर, क्षेत्रफल में विस्तृत थी। इस जमीन को भी गुजरात की लाखों स्क्वेयर मीटर जमीनों की तरह बगैर नीलामी के डीएलएफ के हवाले कर दिया गया था। इससे उस समय के बाजार भाव के हिसाब से गुजरात को २५३ करोड रूपए का नुकसान आंका गया था जो आज की स्थिति में कई गुना के आंकड़े पर पहुंच गया है। डीएलएफ और राबर्ट वाड्रा के रिश्तों को लेकर जो कांग्रेस आज खामोशी अख्तियार किए हुए है, उसी पार्टी के गुजरात के तमाम सांसद और विधायक जून २०११ में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मिले थे और मोदी सरकार की शिकायत दर्ज कराई थी। कांग्रेस की आपत्ति यह थी कि जो जमीन डीएलएफ को दी गई थी, उसकी मार्केट वेल्यू न केवल कई गुना थी बल्कि यह जमीन सेज (स्पेशल एकानॉमिक जोन) के लिए आरक्षित थी, जिस पर डीएलएफ ने आईटी पार्क विकसित कर लिया। ऐसा करने के लिए डीएलएफ के अधिकारियों ने मोदी को करोड़ों रूपए की घूस देकर वह अधिसूचना रद्द करवा ली थी, जो सेज के लिए जारी की गई थी। यहां उल्लेखनीय है कि डीएलएफ को जमीन देने के मामले को सरगर्म होता देख मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एम बी शाह की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित की थी। समिति पर मोदी के प्रभाव का ही परिणाम था जो प्रत्यक्ष रूप से की गई धोखाधड़ी समिति की नजर में नही आई और मामले से मोदी सरकार को क्लीन चिट दे दी गई। कांग्रेस इस रिपोर्ट को नकार चुकी है। मामले में ताजा घटनाक्रम के मुताबिक मोदी को डर सताने लगा है कि वाड्रा की भांति डीएलएफ का भूत उन पर न सवार हो जाए, इसलिए डीएलएफ से जमीन वापस लेने जैसी फर्जी अफवा हें फैलाई जा रही है ताकि लोगों तक गलत संदेश न जाए। असलियत यह है कि मोदी ऐसा सिर्फ विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कर रहे हैं। यंू भी, सरकार अगर कोई कदम उठाती है तो डीएलएफ के पास अदालत में जाकर स्टे लेने का रास्ता खुला पड़ा है।
कोल ब्लॉक की कालिख भी चेहरे पर 
नरेन्द्र मोदी के ढोंगी चेहरे पर कोल ब्लॉक की कालिख भी पुती हुई है। पुष्ट आरोप हैं कि नरेन्द्र मोदी ने छत्तीसगढ़ राज्य खनिज विकास निगम (सीएमडीसी) द्वारा उड़ीसा में हासिल कोल ब्लॉक के विकास का कार्य अदानी ग्रुप को सौंपे जाने में अहम भूमिका निभाई है। उड़ीसा की चंदीपाड़ा और चेंडिपाड़ा की जिन कोल खदानों के विकास कार्य का ठेका अदानी ग्रुप को मिला वह ५०० मिलियन टन क्षमता की हैं और यह खदानें छग सरकार ने बगैर उड़ीसा सरकार की अनुमति लिए केन्द्र सरकार से हासिल की थी।  खदानें मिलने के बाद जब इनके विकास कार्य का प्रश्न आया तो नरेन्द्र मोदी ने छ.ग. के मुख्यमंत्री रमन सिंह पर दबाव डाला और कोयला निकालने तथा विकास के काम के लिए अदानी ग्रुप को एमओडी, माइंस डेव्हलपर कम ऑपरेटर नियुक्त करवा दिया। बताया जाता है कि अपनी करीबी कम्पनी अदानी ग्रुप पर किए गए इस अहसान के बाद मोदी ने मनचाहे करोड़ रूपए प्राप्त किए हैं। इस संबंध में कांग्रेस महासचिव बीके हरिप्रसाद रायपुर में एक प्रेस कान्फ्रेंस आयोजित कर चुके है और अपूर्ण जानकारी मिलने पर आपत्ति के निराकरण के लिए १८ सितंबर को अपील पर फैसला भी हुआ, किन्तु दोनों ही मौकों पर यह कहते हुए जापान दौरों की जानकारी दबा ली गई कि कुछ बताना शेष नहीं है।
उद्योग पतियों को रेवड़ी के भाव दीं अरबों की जमीन केपिटल प्राजेक्ट के तहत भ्रष्टाचार 
नरेन्द मोदी सरकार द्वारा गांधीनगर में उद्योगपतियों को बिना नीलामी के अरबों रूपए की जमीन दे दी गई। इनमें केपिटल प्रोजेक्ट के तहत अधिग्रहित वे जमीने भी शामिल हैं, जिन पर सरकारी अधोसंरचनाओं जैसे विधानसभा का निर्माण, सचिवालय का निर्माण होना था या फिर सरकारी दफ्तर बनाए जाने थे। मोदी सरकार द्वारा अंधेरगर्दी करते हुए सरकारी कर्मचारियों के आवास के लिए सुरक्षित वे जमीन भी उद्योपतियों को दे दी गई, जिनके संबंध में स्पष्ट नियम हैं कि उन्हें किसी भी कीमत पर प्रायवेट पार्टियों को नहीं दिया जा सकता था और अगर किन्हीं कारणों से ऐसा किया जाना जरूरी हो तो सार्वजनिक नीलामी की जानी चाहिए थी लेकिन कोई भी नियम-कानून नहीं मानते हुए मोदी सरकार ने अरबों की ये जमीने बेहद कम कीमतों पर दे दीं। जमीनों की इस बंदरबांट के चलते प्रायवेट कंपनियों को बाजार भाव के मुकाबले काफी सस्ते दाम चुकाने पड़े। ये कम्पनियां ऐसा करने में इसलिए सफल रहीं क्योंकि मोदी सरकार ने दलाली की खुली नीति   .

अपनाई, यानि जो जितनी दलाली दे, उतनी ज्यादा जमीन ले ले। अनुमान है कि सरकारी जमीन निजी कम्पनियों को देने के भ्रष्टाचार के इस खेल में सरकारी कोष को ५१ अरब, ९७ करोड़, १६ लाख, २२ हजार ३१७ रूपए का नुकसान हुआ। आरोप है कि सरकारी घाटे की इस विशाल राशि के बदले मोदी और उनके मंत्रियों को बेशुमार रिश्वतेें और इनायतें बख्शी गईं।
कच्छ जिले में इंडिगोल्ड रिफायनरी लिमिटेड घोटाला सी.एम.ओ. और राजस्व मंत्री द्वारा कानून का उल्लंघन 
सन् २००३ में मेसर्स इंडिगोल्ड रिफायनरी लिमिटेड मुम्बई द्वारा ३९.२५ एकड जमीन अधिग्रहण किया गया। यह जमीन जो कि कुकमा गांव और मोती रेलडी भुज कच्छ जिला स्थित है। यह जमीन क्लास ६३ मुंबई टेनेनसी और फार्म लेंड मेनेजमेंट (विर्दभ और कच्छ के अनुसार उद्योग लगाने का उपयोग कर सकते है।) के अन्तर्गत आती थी। इसकी तरफ से इंडिगोल्ड  रिफायनरी को सर्टिफिकेट दिया ताकि जमीन अधिग्रहण के छह महीने के अंदर उद्योग स्थापित करा जाए। उद्योग लगाने के लिए समय सीमा तीन साल अधिकतम के लिए विस्तारित की जा सकती हैं और अगर उद्यमी तय समय सीमा में काम चालू नही कर पाता तो यह जमीन सरकार को हस्तांतरित हो जाएगी। इंडिगोल्ड रिफायनरी ने ना तो तीन साल में काम चालू किया ना ही समय सीमा बढ़ाने का विस्तार किया और राजनीतिक दबाव के कारण कलेक्टर ने इनके खिलाफ कोई कार्यवाही नही की।
१८-०६-२००९ एल्यूमीना रिफायनरी मुंबई ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि इंडिगोल्ड रिफायनरी की जमीन उसे बेची जाए। सी.एम.ओ. ने राजस्व विभाग को उचित कार्यवाही करने का आदेश दिया।
विभाग ने सी.एम.ओ. कि दिशा-निर्देश पर फाईल बनाई जिसमें प्रमुख सचिव (राजस्व विभाग ) ने टिप्पणी दी कि कृषि भूमि बेची या खरीदी नही जा सकती। इस फाईल को उपेक्षित करके राजस्व मंत्री आनदी बेन पटेल ने जमीन को विशेष श्रेणी में रखते हुए बेचने की अनुमति दे दी जो कि गैरकानूनी है। राजस्व विभाग ने फिर से टिप्पणी भेजी कि जमीन को बेचना कानून के विपरित है। यद्यपी सरकार को जमीन अधिग्रहित करना चाहिए और फिर एल्यूमीना लिमिटेड को बेचना चाहिए और इंडिगोल्ड से ५० प्रतिशत की वसूली की जानी चाहिए।  पर श्रीमती आनंदी बेन पटेल ने सी.एम.ओ के निर्देश के अनुसार इंडिगोल्ड को जमीन बेचने कि अनुमति दे डाली। यह पूरा मामला अपने आप में भ्रष्टाचार, कानून उल्लंघन का एक अनूठा मामला है जिसमें सी.बी.आई की कार्यवाही की अतिशय आवश्यकता है।
पुलिस चाहती तो नहीं होता गोधरा कांड 
सन् २००२ में गुजरात में सुनियोजित ढंग से अंजाम दिए गए दंगे, जो परोक्ष रूप से नरेन्द्र मोदी की शह पर कराया गया नरसंहार था, गोधरा कांड की प्रतिक्रिया में होना प्रचारित किया जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नम्बर एस-६ में २७ फरवरी , २००२ को आग नहीं लगती, न इस आग में झुलसकर ५८ लोगों की मौत होती, अगर पुलिस ने अपना कर्त्तव्य निभाया होता। वास्तविकता यह भी है कि गोधरा ट्रेन पर जब ट्रेन रूकी थी, उससे पहले से ही एस-६ बोगी के यात्रियों के बीच झगड़ा चल रहा था। ट्रेन रूकने का असर यह हुआ कि बोगी में चल रहा झगड़ा और बढ़ गया। बोगी से निकलकर लोग प्लेटफार्म पर झंुड बनाकर निकल आए और तनाव चरम पर पहुंचने लगा। दुखद हैरानी की बात यह है कि यह घटनाक्रम निरंतर ३-४ घंटे चला लेकिन न पुलिस ने झगड़ा शांत करने की कोशिश की, न जीआरपी ने हालात को संभालने के लिए पहल की। सभी मूकदर्शक बने रहे जिसके चलते एक ऐसा अप्रत्याशित हादसा हो गया, जिसकी संभवतः झगड़ा कर रहे दोनों पक्षों ने भी कल्पना नहीं की होगी।
धुंए से भड़की आग, भभक उठी बोगी (एसफेक्शिया)


गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नम्बर एस-६ को मुसलमानों द्वारा ५८ कारसेवकों को जिंदा जलाने की घटना के रूप में प्रचारित किया गया, ताकि इसके बाद समूचे गुजरात में हुए नरसंहार को गोधरा कांड की प्रतिक्रिया बताया जा सके, लेकिन वास्तविकता यह है कि ट्रेन में आग नहीं लगी थी, बल्कि बोगी के बाहर उपद्रव कर रहे लोगों ने बोगी की खिड़कियों से सटाकर जो काकड़े (कपड़े में घासलेट लगाकर धुंआ)  रख थे, वह बोगी में आग लगने का सबब बना। यह गलत प्रचारित किया गया कि एस-६ में सिर्फ कारसेवक सवार थे। सच्चाई यह है कि बोगी में कारसेवक और मुसलमान सफल कर रहे थे और उनके बीच एक लड़की से बलात्कार किए जाने की घटना (अफवाह?) के कारण गोधरा स्टेशन आने से पहले से गंभीर झडप चल रही थी। ट्रेन जैसे ही गोधरा स्टेशन पर रूकी, झड़प कर रहे लोग बाहर आ गए और विवाद ने हिंसक स्वरूप ले लिया। आपस में पथराव होने लगा और प्लेटफार्म पर अफरा-तफरी की स्थिति बन गई। पुलिस चाहती, जीआरपी चेतती या गोधरा एसपी समय रहते स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश करते तो मामला हिंसक मोड़ नहीं लेता, न ही इसकी परिणिति बोगी में आग लगने के रूप में होती, किन्तु पुलिस प्रशासन निष्क्रिय और उदासीन बना रहा। इसे पुलिस फेलियर की स्थिति कहा जा सकता है जिसने हिंसा पर आमादा दो गुटों के बीच घंटो संघर्ष की स्थिति बनी रहने दी, जो गोधरा कांड का सबब बन गई। प्लेटफार्म पर जारी हिंसा से आतंकित होकर एस-६ बोगी में बैठे लोगों ने तमाम खिड़की-दरवाजे बंद कर लिए ताकि हिंसक भीड़ उन पर हमला न कर सके किन्तु उनके द्वारा बरती गई यह भयजनित सावधानी मौत का सबब बन गई, चूंकि बोगी के बाहर जमा हिंसक भीड़ बोगी में बैठे लोगों को बाहर निकालने पर आमाद थी, और जब सारे खिड़की-दरवाजे बंदकर लिए गए तो अंदर बैठे लोगों को बाहर निकालने के लिए मजबूर करने की खातिर भीड़ ने काकड़े जला लिए और खिड़की दरवाजों से सटाकर रख दिए ताकि भीतर धुआं फैले और लोग खिड़की-दरवाजे खोलने के लिए मजबूर हों, लेकिन सभी तरफ से बंद एस-६ बोगी में धुंआ इस तेजी से और बड़ी मात्रा में फैला कि ५८ लोगों की दम घुटने से मौत हो गई। गोधरा कांड को सांप्रदायिक रंग देने के लिए नरेन्द्र मोदी की शह पर यह प्रचारित किया गया कि ५८ कारसेवकों की मौत गोधरा स्टेशन पर जमा मुसलमानों की हिंसक   भीड़ द्वारा बोगी में आग लगाने से हुई जबकि सच यह है कि आग लगाई ही नहीं गई। बोगी में मौजूद ५८ लोगों की मौत धुंए से दम घुटकर हो चुकी थी, और जो बचे थे, वे धुंए से बेदम होकर जैसे-तैसे दरवाजे खोलने में सफल हुए, कि अंदर के धुंए के बाहर की हवा में सम्पर्क में आते ही आग भभक पड़ी और बोगी धूं-धू करके जलने लगी। वैज्ञानिक भाषा में धुंए के बाहरी हवा के सम्पर्क में आने के कारण आग लगने को एस्फेक्शिया कहते हैं। इससे साबित होता है कि गोधरा रेलवे स्टेशन पर २७ फरवरी, २००२ को जो कुछ हुआ, वह एक हिंसक झड़प के अप्रत्याशित ढंग से दुर्घटनात्मक स्वरूप लिए जाने की परिणति था, लेकिन इसे सारे गुजरात में और देश भर में यूं प्रचारित किया गया कि साबरमती एक्सप्रेस में सफर कर रहे ५८ कारसेवकों को गोधरा रेलवे स्टेशन पर मुसलमानों की हिंसक भीड़ ने बोगी में आग लगाकर जिंदा जला दिया। यह अफवाह फैलाने के पीछे जिस व्यक्ति का दिमाग था, उसका नाम है नरेन्द्र मोदी, जिसने गोधरा में हुई दुखद घटना को इस कदर साम्प्रदायिक रंग दिया कि अगले कई दिनों तक सारा गुजरात जलता रहा, हिंसक भीड़ सरेआम नरसंहार करती रही और दो हजार से भी ज्यादा स्त्री-पुरूष, बुजुर्ग-बूढे और मासूम बच्चे मौत का शिकार हो गए।
पिटाई से बिफरा मोदी ने किया मौत का तांडव 
गोधरा कांड को १० साल से भी ज्यादा बीत चुका है और इस लम्बे अर्से के दौरान यह तथ्य खुलकर सामने आ चुका है कि गुजरात में गोधरा की घटना के बाद सुनियोजित दंगों की शक्ल में हुए नरसंहार के एकमात्र सूत्रधार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी थे। उग्रहिन्दुत्व के अलंबरदार इस सबके लिए मोदी को हिन्दुत्व का हीरो कहते नहीं थकते हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि नरेन्द्र मोदी ने पोस्ट गोधरा का प्रायोजन किसी हिन्दुत्व एजेंडे के तहत् नहीं किया, न ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें इसके लिए उकसाया, बल्कि सच यह है कि नरेन्द्र मोदी ने गोधरा की घटना के बाद मौत का तांडव इसलिए खेला, क्योंकि वह गोधरा रेलवे स्टेशन पर कारसेवकों की भीड़ द्वारा की गई बेतहाशा पिटाई से बुरी तरह बिफरा था और पिटाई की बात न फैले, इसके लिए उसने पहले गोधरा की घटना को साम्प्रदायिक रंग दिया, फिर समूचे गुजरात को लाशों से पाट दिया। मोदी की इस बेतहाशा पिटाई के सैंकड़ों प्रत्यक्षदर्शी हैं, जिन्होंने देखा कि साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में सवार ५८ लोगों की मौत के बाद जब नरेन्द्र मोदी मौके पर पहुंचे तो घटना से बुरी तरह क्षुब्ध और आक्रोशित भीड़ उन पर टूट पड़ी और गुजरात के मुख्यमंत्री पर घूंसे लातों और चप्पलों की बौछार होने लगी। मोदी की इस पिटाई का बड़ा श्रेय तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अशोक भट्ट को जाता है। जिन्हें गोधरा स्टेशन पर हुई घटना की खबर मिलने के बाद खुद नरेन्द्र मोदी ने वस्तुस्थिति जानने के लिए मौके पर भेजा था। भट्ट जब गोधरा रेलवे स्टेशन पहुंचा, कारसेवकों की भीड़ गुस्से से सुलग रही थी। इस गुस्से को अशोक भट्ट ने और भी सुलगा दिया, और जब कुछ देर बाद खुद नरेन्द्र मोदी रेलवे स्टेशन पहुंचे, आक्रोशित भीड़ उन पर टूट पड़ी और बेदर्दी से पीटने लगी। मुख्यमंत्री थे, लिहाजा सुरक्षाकर्मियों ने जैसे-तैसे उन्हें भीड़ से निकाला, लेकिन इस बेतरह पिटाई से अपमान का दंश रह-रहकर इस दुःस्वप्न से भयाक्रांत कर रहा था कि गुजरात में उनकी पकड़ ढीली पड़ जाएगी। विधानसभा में २८ फरवरी २००२ को नरेन्द्र मोदी ने भड़काउ भाषण दिया इस भाषण के बाद गुजरात में भारी दंगे फैल गए। दो महीने पहले ही चुनाव जीते मुख्यमंत्री की अपमानजनक पिटाई की खबर अगर जनता में फैली तो बुरी तरह जगहंसाई तो होगी ही, कुर्सी भी खतरे में पड सकती है। बौखलाहट, अपमान, दहशत और शर्मिंदगी के इन्हीं मिले-जुले अहसासों ने मोदी के भीतर एक ऐसे कुत्सित षड्यंत्र के बीज बोए कि पिटाई के तुरंत बाद कार से बडौदा के रास्ते में उन्होंने जघन्य हत्याकांड की पटकथा बुन डाली। बडौदा से हवाई जहाज से अहमदाबाद पहुंचते-पहुंचते उन्होंने तमाम पहलुओं पर सोच-विचार कर लिया और यह भी तय कर लिया कि नापाक मंसूबों को किस प्रकार अंजाम देना है। इसके बाद गुजरात में रक्तपात का जो जुगुप्सापूर्ण दौर चला, वह सबके सामने आ चुका है।
अक्षरधाम का खौफ, हरेन अलविदा….! 
जैसा कि पहले लिख चुके हैं, नरेन्द्र मोदी खुद को बचाने के लिए अपनी ही पार्टी के नेता की जान लेने से भी पीछे नहीं हटते। उनकी इसी खूनी सनक का शिकार पूर्व विधायक हरेन पण्ड्या को माना जाता है, जिन्होंने अपने करीबी मित्र को यह बताने की गलती की कि मैं दो दिन के भीतर मोदी सरकार को गिरा दूंगा। मित्रता के विश्वास में की गई इस गलती की सजा हरेन पण्ड्या को अपनी जान की कीमत देकर चुकानी पडी, क्योंकि विश्वासघाती मित्रों ने हरेन की बात नरेन्द्र मोदी तक पहुंचा दीं, जो जानते थे कि हरेन पण्ड्या झूठ नहीं बोल रहे हैं। हरेन पण्ड्या अक्षरधाम मंदिर में आतंकवादी घटना का षड्यंत्र रचे जाने से वाकिफ थे और उनके पास इस बात के पुष्ट और प्रामाणिक साक्ष्य थे जिनसे यह साबित हो जाता कि अक्षरधाम की घटना गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुनियोजित राजनीतिक साजिश थी। गोधरा कांड और इसके बाद गुजरात में हुए भीषण नरसंहार में नरेन्द्र मोदी की परोक्ष भूमिका से भी हरेन पण्ड्या अनजान नहीं थे। एक राष्ट्रीय पत्रिका को दिए साक्षात्कार में हरेन पण्ड्या ने मोदी पर सीधे-सीधे गुजरात दंगों का सूत्रधार होने का आरोप मढ़ दिया था और खुलासा किया था कि मोदी ने सभी आला अफसरों को और राजनीतिज्ञों के सामने यह कहा था कि हिन्दुओं के मन में जो आक्रोश है, उसे निकलने देना चाहिए। लेकिन गुजरात दंगों से भी ज्यादा खौफ मोदी को अक्षरधाम की हकीकत सामने आने का था, इसलिए जैसे ही उन्हें यह भनक लगी कि हरेन पण्ड्या इसे लेकर सच्चाई उगल सकते है, उन्हें सत्ता छिनने का खौफ सताने लगा। यह महज इत्तेफाक नहीं है कि हरेन पण्ड्या द्वारा मोदी सरकार गिराने की बात कहे जाने के बाद उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या का षड्यंत्र रचने के आरोप सीधे तौर पर नरेन्द्र मोदी से जुड़ते है इस काम में अहमदाबाद के प्रमुख बिल्डर जक्सद शाह, जो हरेन पण्ड्या के बिजनेस पार्टनर थे, तथा एक समाचार पत्र के मालिक ना नाम भी आ रहा है। इन्हीं दोनों ने हरेन पण्ड्या को सिरखैर-गांधीनगर हाईवे स्थित फार्म हाउस पर बुलवाया जहां उनकी हत्या कर दी गई। हत्या    की यह गुत्थी अब तक अनसुलझी है क्योंकि सीबीआई ने मामले की गलत विवेचना की और असली आरोपियों को बचा लिया। यहां यह बताना जरूरी है कि गुजरात की राजनीति में मोदी, हरेन पण्ड्या के खुन्नस खाए दुश्मन माने जाते थे। इसका कारण तीन बार एलिस ब्रिज, अहमदाबाद की सीट से विधायक रहे हरेन पण्ड्या द्वारा मोदी के कहे जाने के बावजूद सीट खाली नहीं किया जाना था। इससे खार-खाए बैठे मोदी ने मौका मिलते ही हरेन पण्ड्या का टिकट कटवाया, और जब हरेन पण्ड्या उनकी खुली खिलाफत पर उतर आए तो मोदी ने उन्हंे हमेशा-हमेशा के लिए रूखसत कर दिया।
हरेन पण्डया की हत्या के पीछे सरकार के मुखिया का हाथ था। क्योंकि हरेन पण्डया उनको बेनकाब करने वाले थे। पण्डया की हत्या का केस आनन-फानन में सीबीआई को दे दिया गया। उस समय केन्द्र में एनडीए की सरकार थी। और सीबीआई ने केन्द्र के दबाव में आकर गलत विवेचना की जिसका बिन्दुवार निम्न है
हरेन पंडया की हत्या २६.०३.२००३ को आई-सीआर. नं. २७२/०३ को एलिस ब्रिज पुलिस थाने में दर्ज किया गया। मामले को पुलिस ने दो दिन तक जस का तस रखा और धारा ३०२, १२०बी आईपीसी और से. २५(१)बी २७ आदि आर्म्स एक्ट पर मामला दर्ज किया। सिर्फ दो दिन बाद ही मामला सीबीआई को दे दिया गया जोकि केन्द्र सरकार द्वारा २८.०३.२००३ को अपने अधिकार में ले लिया गया। और सारी विवेचना सीबीआई के हाथों में दे दिया गया। और सीबीआई ने फिर से कंप्लेंट दर्ज किया। 


जगदीश तिवारी जो कि विश्व हिन्दू परिषद के एक स्थानीय नेता है को तारीख ११.०३.२००३ को रात में ९.३० बजे गोली मारकर घायल किया गया। जोकि बापूनगर पुलिस थाना में आई-सीआर. नं.१०१/०३ धारा २०७, ३४ आईपीसी और से सेक्शन २५(१),एबी २७ आर्म्स एक्ट के अंतर्गत दर्ज कर लिया गया।
हरेन पंडया की हत्या के मामले में सीबीआई ने विवेचना चालू कर दी और तारीख २८.०४.२००३ को राज्य सरकार ने जगदीश तिवारी का केस भी सीबीआई को देने का निर्णय किया और केन्द्र सरकार ने २९.०५.२००३ को केस सीबीआई को दे दिया।
ऊपर कथित दोनो मामले अपने आप में अलग-अलग जगह दर्ज है जिनकी धाराएं आपस में अलग है पर दोनो को एक ही साजिश मानकर सीबीआई ने केस दर्ज कर हरेन पंडया की हत्या को राज्य सरकार के दबाव में दबाने का प्रयत्न किया। क्योंकि दोनो मामलों की तासीर अलग-अलग थी इसलिए दोनो मामलों की अलग-अलग विवेचना की जानी थी यह इसलिए भी प्रासंगिक नहीं लगता श्री जगदीश तिवारी छोटे से विश्व हिन्दु परिषद के कार्यकर्ता थे जबकि हरेन पंडया पूर्व केन्द्रीय मंत्री थे। पहला मामला हत्या का प्रयत्न करने का था जबकि दूसरा हत्या करने का था पर इस तरीके के दोनो मामले का मिश्रण करने से असली गुनहगारों को संरक्षण देने का काम किया गया। अतः जानबूझकर केस को कमजोर किया गया। जब दो अलग-अलग जगह, समय, व्यक्ति की कंप्लेंट सेक्शन १७७ के तहत अलग थी और सेक्शन २१८ सीआरपीसी के तहत दोनो मामलो में व्यक्तियों को अलग-अलग केस लेकर विवेचना करनी चाहिए थी पर सीबीआई ने राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के दबाव में असली अभियुक्तों को बचाने के लिए सीआरपीसी की धाराओं का उल्लंघन करते हुए दोनों केस की सिर्फ एक ही चार्जशीट प्रस्तुत की। सीबीआई मजिस्ट्रेट कोर्ट ने भी एक ही चार्जशीट के मामले में गलती स्वीकार की और पूरी जांच गलत पाई गई। ऐसे ही एक मामले में विजिन्दर वि. दिल्ली सरकार १९९७, ६ एससी १७१, सेक्शन २२८ सीआरपीसी के तहत सीबीआई अदालत ने दो मामलो की एक चार्जशीट को गलत माना।
हरेन पंडया की जांच में निम्नलिखित कमी पाई गई – 
पुलिस ने हत्या के स्थान पर पहुंचने में चार घंटा लगा दिया जबकि एलिस ब्रिज पुलिस थाना हत्या के स्थान से केवल ७ मिनिट की दूरी पर है।
हत्या के स्थान से मीठाखाली पुलिस लाईन काफी नजदीक है। तब भी न किसी ने देखा न कुछ किया।
हरेन पंडया की लाश गाड़ी की ड्राईवर सीट पर मिली पर न उनके गले, हाथ और छाती पर कोई खून का दाग नहीं मिला इसका मतलब उन पर फायरिंग लॉ गार्डन पर नहीं हुई उनका खून कहीं और हुआ  और लाश लाकर यहां रखी गई। इस बात का वर्णन निर्णय इश्यू नं.१६ में दर्ज है तब भी सीबीआई या पुलिस ने इस पर कोई विवेचना नहीं की है।
पुलिस ने घटना के स्थान का कोई मानचित्र नहीं बनाया जबकि मानचित्र सीबीआई द्वारा तीन दिन बाद बनाया गया जिससे बहुत सारे साक्ष्य सामने नहीं आये।
सुबह ७.३० बजे इकलौते गवाह की वास्तविक स्थिति घटना स्थल से नहीं दर्ज की गई है और उस पर कोई विवेचना नहीं दर्ज की गई है।
हरेन पंडया का मोबाईल तुरंत जब्त कर लिया गया था पर उनकी कॉल डिटेल निकालने की कोई जहमत नहीं उठाई गई ना ही यह पता लगाने की कोशिश की गई कि आखिरी फोन किसने और किस समय किया। इसके अतिरिक्त उनके मोबाईल से यह भी पता लगाने की कोशिश नहीं की गई की हरेन पंडया ने आखिरी मैसेज और आखिरी कॉल कब उठाया। इंक्वायरी आफीसर ने जांच के दौरान यह माना था कि एलिस ब्रिज पुलिस थाने से जो मोबाईल फोन सीबीआई को प्राप्त हुआ मुहर लगी हुई स्थिति में नहीं मिला। इसकी जानकारी उन्होंने निर्णय के इश्यू नं. १६ में दर्ज की है।
घटना स्थल से जो प्रयुक्त हथियार मिला उसका फिंगर प्रिंट नहीं लिया गया।
हरेन पंडया के जूतों की फोरेंसिक जांच भी नहीं किया जिससे यह पता चलता कि उन्होंने सुबह लॉ गार्डन में मॉरनिंग वॉक किया था या

नही। और उनके जूते हास्पीटल से कैसे गायब हो गये। इसकी जानकारी भी सीबीआई या राज्य पुलिस ने नहीं दी।
जब घटना स्थल से कोई प्रयुक्त हथियार, गोली, बंदूक का पाउडर नहीं मिला तो यह कैसे माना गया कि उनकी हत्या प्रयुक्त स्थान पर ही हुई है।
अभियोजन गवाह अशोक अरोरा जोकि बेलिस्टिक विशेषज्ञ है उनके मुताबिक हरेन पंडया को सात गोली लगी जबकि उनका पोस्टमार्टम करने वाले डॉ. प्रतीक आर पटेल के मुताबिक हरेन पंडया को पांच गोली लगी और शायद एक गोली उसी समय शरीर के अंदर घुसी जिस समय दूसरी गोली निकली।
डीडब्ल्यू ६ (ईएक्सएच ८४८ डॉ. एम नारायण रेड्डी विभागाध्यक्ष फारेंसिंक मेडीसन उस्मानिया मेडीकल कॉलेज हैदराबाद) के मुताबिक कार का कांच तीन इंच खुला था और इतनी कम जगह से कोई हाथ कार के अंदर घुस कर फायर नहीं कर सकता।
माना जाता है हरेन पंडया की हत्या में सूफी पतंगा और रसूल पत्ती शामिल है जिन्होंने राज्य सरकार के मुखिया के कहने पर हरेन पंडया को ठिकाने लगाया। अभी ये दोनो हत्यारे गायब है और सीबीआई ने गलत अभियुक्त पेश करके पूरी साजिश का पर्दाफाश होने से बचाया है। इन सब तथ्यों से यह जाहिर होता है कि राज्य सरकार और सीबीआई ने हरेन पंडया की जांच सही तरीके से नहीं की और इसमें बहुत सारी त्रुटिया पायी गई जिसके कारण इंसाफ बाहर नहीं निकल पाया।
मोदी का कार्यकाल, गुजरात बेहाल
नरेन्द्र मोदी के पिछले ११ साल के कार्यकाल में गुजरात बेहाल स्थिति में पहुंच गया है। कानून व्यवस्था हो या जन सुविधाएं, विकास कार्य हो या आर्थिक विकास, सामाजिक विकास हो या मानवाधिकार हर मोर्चे पर विफल रहे नरेन्द्र मोदी ने गुजरात को एक ऐसे राज्य में तब्दील कर दिया है जहां भय, भ्रष्टाचार और अराजकता का आलम सर्वत्र पसरा नजर आता है। कृषि, उद्योग-धंधों, तकनीकी और भूमि सुधार के क्षेत्र में भी यह राज्य अन्य विकसित राज्यों के मुकाबले निरंतर पिछड़ता जा रहा है। सांप्रदायिकता का नासूर देकर नरेन्द्र मोदी ने गुजरात की छवि सारी दुनिया में कलंकित की है वहीं अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को बढ़-चढ़कर प्रश्रय प्रदान किया है। भ्रष्टतंत्र का फायदा उठाकर अपना आर्थिक साम्राज्य स्थापित करने की मंशा रखने वाले कार्पोरेट समूहो, उद्योगपतियों से नापाक आर्थिक मिली भगत, गठबंधन ओर दुरभिसंधियां करके मोदी ने घोटालों और घपलों के रिकार्ड ध्वस्त कर दिए है वहीं सरकारी जमीनों को पूंजीपतियों के हवाले करके राज्य को बेचने जैसे कुषडयंत्रों को अंजाम दिया है। मानवाधिकार, स्त्री-अधिकार, बालसंरक्षण, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और अनुसूचित जातियो-जनजातियों को न्याय दिलाने के मामले में भी नरेन्द्र मोदी पूरी तरह अक्षम साबित हुए हैं। आम जनता में असुरक्षा और आतंक फैलाकर गुजरात का यह मनो-विक्षिप्त मुख्यमंत्री किन घिनौने लक्ष्यों की पूर्ति करना चाहता है, यह बात किसी के भी समझ से परे हैं।