by – अल्लाम अशरफ़
मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ,
अपना हिंदुस्ताँ कभी इंडिया न हुआ,
टोटके हर मर्ज़ के हैं बाबा के झोले में,
साइयंटिफ़िक अप्रोच से कोई वास्ता न हुआ,
प्रपंच रचता रहा पंडित तुम्हारे आँगन में,
क्या तुम्हारे घर हवन का वाक़या न हुआ?
पियो मूत्र गाय का, हरेगा दुःख सारे,
क्या हुआ जो भुखमरी की दवा न हुआ,
मज़दूर पिट रहा है सड़कों पे,
उसकी भूख कोई सरकारी मसला न हुआ,
मर गयी ‘अर्चना’ मुज़फ़्फ़रपुर की पटरी पे,
करोड़ों के वादे का कोई फ़ायदा न हुआ,
कौन देखेगा उसके बच्चों को कौन सुध लेगा,
ऐसी मौतों से जो रुसवा हो वो नेता पैदा न हुआ,
ऐसी ख़बरों पे भी कुछ नहीं बोलता रहबर मेरा,
ऐसा पत्थर-दिल कोई रहनुमा न हुआ…
अल्लाम अशरफ़
June 7, 2020 at 9:27 pm
The lines echo grim present situation and aptly reflect trails and sufferings of marginalised sectionss