by- Swapnil Musafir

लौट  सका  तो  फिर   आऊँगा,

स्वप्निल    शहर    बसाने    को।

लेकिन  आज  मुझे  मत  रोको,

मन   करता   घर   जाने   को।।

क्रूर काल ने  विषम व्याधि  का,

निर्मम    अस्त्र     चलाया     है।

रोजगार  का   गला   घोंट  कर,

निर्धन     और     बनाया     है।


 
मातापिता,   बहनभाई    सब,

मिलने      को      बेचैन     हुए।

दिवस  रैन  आँसू   से   बोझिल,

घर  – वाली    के     नैन     हुए।

होगा फिर  सब  ठीक, जा  रहा,

ढाढ़स     उन्हें     दिलाने    को।

लेकिन आज   हमें   मत  रोको,

मन   करता     घर…………….


 स्वेद-कणों से अभिसिंचित कर,

हमने       नगर      बनाये     हैं।

मंदिरमस्जिद,    महलदुमहले,

सब     मेरे      ही     जाये    है।


 
हमें   बना   कर   विश्वविधाता,

भवसागर    में    छोड़    गया।

भूल   गया  अपनी   रचना  को,

दुख   से    नाता   जोड़    गया।


 
   जाओ !   करुणा   निधान,

दुखियों   का  दर्द   मिटाने  को।

लेकिन  आज   हमें  मत  रोको,

मन   करता   घर …………….

जननी  जन्म – भूमि  की  माटी,

हमको    याद    बहुत    आती।

बचपन   बीता    जहांँ    हमारा,

वह    अपनी   अनुपम    थाती।


उसे  त्याग  कर  उदर-पूर्ति  को,

इधर    नगर     में    आया    हूँ।

माँ   पीड़ा  को   समझ  रही  है,

मैं    उसका    ही     जाया    हूँ।

भूखा  जान    हमारे    परिजन,

बुला   रहे   कुछ    खाने    को।

लेकिन  आज  हमें   मत  रोको,

मन   करता   घर……………..

आयातित है  वाह्य  व्याधि  यह,

हम  सब  का  कुछ  दोष  नहीं।

वायुयान   से    ले    आये   जो,

उन   पर    करते   रोष    कहीं।


 
जो  समर्थ  धनपति  धरती   के,

उनकी   त्रुटि   का  ध्यान  करो।

शुद्ध    सर्वहारा     प्राणी    का,

और     अब   अपमान   करो।


   
इज्जत    से   रोटी    खाते   हैं,

चिंतित    लाज    बचाने    को।

लेकिन  आज   हमें  मत  रोको,

मन   करता   घर……………..

मत   करना  उपहास कभी भी,

काल     सदा    हमसे     हारा।

श्रम से सुरभित अपना तनमन,

निष्कलंक      जीवन      सारा।


 
पतझड़  में   पंचम  सुर  गाकर,

जीवन   मधु   जग   पर   वारा।

हमने  गिरि, वन, काट रचे  पथ,

मोड़ी    नदियों      की     धारा।

 देश   भक्त    हम   यत्न   करेंगे,

फिर   अच्छे   दिन   लाने   को।

लेकिन  आज   हमें  मत  रोको,

मन   करता  घर………………


लौट  सका  तो   फिर  आऊँगा,

स्वप्निल    शहर    बसाने    को।

लेकिन  आज  हमें   मत  रोको,

मन   करता   घर   जाने   को।।