by Pragnya Joshi on Wednesday, 25 July 2012 at 22:34 ·

 प्रिय साथियों,

यहाँ दो नोट्स दे रही हूँ.

  1. राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा तथा सदस्य निर्मला सामंत प्रवालाकर की सराडा प्रकरण में जो असंवेदनशील पडताल और रवैय्या रहा है उस पर उदयपुर के महिला संगठनों की टिप्पणी और निषेध.
  2. संगठनों के समूह की टीम २३ जुलाई को घटना के दूसरे दिन उत्पीडिता से मिली और सराडा पुलिस थाणे जाकर मामले को समझने की कोशीश की, उसकी रिपोर्ट/ज्ञापन|

दोनों  यहाँ जारी कर रही हूँ ताकि सभी साथी सुझाव व प्रतिक्रियाँ दर्ज कर सके और महिला आयोग के रवैय्ये पर क्या किया जा सकता है इस पर सार्थक मंथन हो सके.

 

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दिनांक: 25 जुलाई, 2012

 

घटनास्थल पर न जाते हुए पीड़ित युगल को उदयपुर के पास बुलाकर मिलने व तहकीकात की खानापूर्ति की गई। उत्पीड़ितो को किसी भी प्रकार की चिकित्सकीय सहायता उबलब्ध करवाने या इस संबन्ध में किसी भी प्रकार का आदेश देने की जरुरत आयोग को नहीं महसूस हुई। इसी तरह घटनास्थल पर गवाहो से अथवा अन्य समुदाय को खासकर लड़की के सभी परिजनों को न्याय का आश्वासन या उनके कंधे पर विश्वास का हाथ रखने की जहमत आयोग ने नहीं उठाई। महिला अत्याचार विरोधी मंच, उदयपुर के तहत विभिन्न महिला संगठन, मानवाधिकार संगठन तथा सामाजिक कार्यकर्ता इस असंवेदनशील रवैये का निषेध करते है।

सामंतो के दरबार मे पेशी:  24 जुलाई को सुबह 9 बजे से पहले उत्पीड़ितों को मिलने की खानापूर्ति आयोग कर चुका था। इसका अर्थ है कि अलसुबह उन्हें उनके गाँव या आश्रयस्थल से बुलवा लिया गया। डबोक हवाई अड्डे से सर्किट हाउस के बीच में किसी अज्ञात स्थान पर यह मुलाकात की गई। इससे जाहिर है कि जिस संवेदनापूर्ण माहौल में यह मुलाकात होनी चाहिए थी वह नहीं हुई। इस घटना के संदर्भ मे उत्पीड़ितों के मन में बसी दहशत को देखते हुए उनके लिए इस तरह अचानक उदयपुर के पास आना निश्चय ही भयावह रहा होगा। उन्हें फिर से दहशत के दौर से गुजरने पर मजबूर किया गया। यह रवैया बिल्कुल वैसा ही है जैसे सामंतो के दरबार मे पेशी लगती हो।

दहशत तथा उत्पीड़न की स्थिति में आयोग का पीड़ितों पर दबाव: अगर आयोग दहशत और उत्पीड़न की स्थिति में उन्हें अपने आश्रय स्थल से अन्य जगह पर आने के लिए मजबूर ना करता व खुद उनके कंधे पर विश्वास का हाथ रखते हुए उन्हें न्याय दिलाने की आस जगाता तो उत्पीड़ितों का सरकारी तंत्र पर विश्वास गहरा होता। यह ना केवल खेद जनक है बल्कि यह आक्रोश पैदा करता है कि अगर उत्पीड़न के दर्द को महसूस करने की क्षमता आयोग के सदस्य नहीं रखते तो उन्हें इस तरह के सरकारी खर्चों की यात्रा पर नहीं आना चाहिए।

चिकित्सकीय सहायता को किया नजरअंदाज:उत्पीड़ितों को लंबे समय तक बंधक बनाकर पेड़ से बांध दिया गया था। उनके साथ मारपीट हुई थी, उन्हें विद्रुप किया गया था। ऐसे में उन्हें चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिए थी। इस संबन्ध में महिला आयोग ने किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं समझी। ना ही संबधित अधिकारियों को इस संबन्ध में निर्देष दिए और ना ही मीडिया को इस संबन्ध में कोई जानकारी दी। यह उनका उत्पीड़ितो के प्रति नजरिया स्पष्ट करता है और उनकी नीयत पर प्रश्नचिन्ह लगता है।

उत्पीड़िता से मिलने आम नागरिक पहुँचा परंतु आयोग नहींज्ञात हो कि इसी मंच की तरफ से चार सदस्यीय तथ्यान्वेषण टीम बिना किसी सरकारी सुरक्षा के 23 जुलाई 2012 को शाम लगभग चार बजे उत्पीड़िता के पीहर पक्ष के गांव मे, चावंड पंचायत के अंबाला गांव  में कटार फला में पीड़िता के पीहर पहुंची तथा सराड़ा थाना जाकर उन्होने मामले को समझने तथा तथ्य जुटाने की कोशिश की थी। देर रात यह टीम जिसमें विभिन्नन संगठनों से तीन महिला सदस्य और एक पुरुष सदस्य था, अंबाला गांव के सरपंच श्री कालूलाल मीणा के घर पर उत्पीड़िता से मिली व उन्होने उसका पक्ष तथा बयान सुना। रात के लगभग 8.30 बजे तक यह टीम गांव में थी। परंतु राष्ट्रिय महिला आयोग ने कानून व्यवस्था को हवाला देते हुए उत्पीड़ितों को उनके आश्रय स्थल पर मिलना उचित नहीं समझा। अगर पूरे सरकारी सुरक्षा के बावजूद महिला आयोग दूरदराज के क्षेत्रों में उत्पीड़ितों तक पहुँचने में अगर परहेज करें तो फिर उत्पीड़ित उनसे न्याय मिलने की अपेक्षा भी कैसे करें?

महिलाओं तथा मानवाधिकार के मुद्दों पर आयोग की समझ पर प्रश्नचिन्ह:जब प्रैस वार्ता में रामआ की अध्यक्ष ममता शर्मा ने यह कहा कि सराड़ा के कोलर गांव जाने का इसलिए औचित्य नही है क्योकि घटना हो चुकी है और वहां जाकर क्या वे पेड़ो से बातें करती। ऐसे में जाहिर है कि गवाहों से बात करके उन्हें विश्वास दिलाना आयोग ने जरुरी नहीं समझा। साथ ही वहां पर गांवो में जाकर उत्पीड़ितों के परिजनों को मिलकर उन्हें दहशत से बाहर निकालने की जरुरत आयोग को नही महसूस हुई और ना ही वहां की आम महिलाओं को उनके आने से जो सुरक्षा का अहसास होता वह अहसास दिलाने की जरुरत भी उन्होनें नही समझी।

सुरक्षित पुनर्वास भूल गया आयोग: मीडियाकर्मियों के द्वारा ली गई फोटो, विडियों फुटेज तथा इस तथ्यान्वेषण समूह को उत्पीड़िता द्वार दी गई जानकारी के अनुसार वहाँ मौतबीर / पंच भी उपस्थित थे व लगभग 200 लोगों का जमावड़ा था। प्रशासन बार बार इसे केवल एक परिवार के साथ जोड़ रहा है। ऐसे में इस दहशत के माहौल से उत्पीड़ितों को सुरक्षित स्थल पर पुनर्वासित करने की आवश्यकता है और इस आवश्यकता को अधिकारियों के समक्ष रखना आयोग ने जरुरी नही समझा।  साथ ही परिजनों को सुरक्षा प्रदान करने के संबन्ध में आयोग ने कोई जिक्र नही किया।

महिला अत्याचार विरोधी मंच, उदयपुर के  हम सभी संगठन आयोग के असंवेदनापूर्ण रवैये का निषेध करते है व आयोग से अपेक्षा करते है कि वे  महिला व मानवाधिकार के मुद्दें पर अपनी समझ को अधिक गहराई से विकसित करेंगे।

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उषा चौधरी         प्रज्ञा जोशी          सुधा चौधरी         लोकेश गुर्ज़र

विकल्प संस्थान     पीयूसीएल        ऐपवा              एडवोकेट, उदयपुर          

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महिला अत्याचार विरोधी मंच, उदयपुर 

96 – बी, पुराना फतेहपुरा, उदयपुर 

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दिनाँक – 24  जुलाई 2012 

माननीय अध्यक्ष,                                          

राष्ट्रीय महिला आयोग,

नई दिल्ली

विषय – 22 जुलाई, 2012 को सराड़ा तहसील, उदयपुर के कोलर गांव में महिला को निर्वस्त्र कर उत्पीड़न करने के मामले में प्रतिवेदन व आवेदन।  

माननीय महोदया,

उपरोक्त विषय में नम्र निवेदन है कि उदयपुर (राजस्थान) जिले की सराड़ा तहसील के कोलर गांव में दिनांक 22 जुलाई 2012 को एक सामुदायिक फरमान के तहत एक युगल को मारपीट कर पेड़ से पेड़ से बांधकर उत्पीड़ित किया गया तथा उसमें से महिला को सार्वजनिक रुप से निर्वस्त्र कर यौनिक रुप से उत्पीड़ीत किया गया। इस मामले में चार सदस्यीय तथ्यान्वेषण टीम संबधित महिला के पीहर स्थल पहुँची, दिनांक 23 जुलाई 2012 को इस तथ्यान्वेषण टीम ने सराड़ा थाना तथा चावण्ड  पंचायत के अंबाला गांव में सरपंच श्री कालूराम मीणा तथा उत्पीडिता के पीहर पक्ष के परिवार से मिलकर मामले की जानकारी हासिल की। इस जानकारी के अनुसार निम्न तथ्य सामने आए –

  1. यह पूरी घटना पूर्व नियोजित थी व सामादायिक रुप से असंवैधानिक फरमान जारी करते हुए उत्पीड़न की घटना को अंजाम दिया गया। उत्पीडिता के अनुसार वहाँ चार पालों (आदिवासी समाज के सामुदायिक पंचायत के क्षेत्रवार विभाजन) के मौतबीर / मुखिया / पंच घटनास्थल पर मौजुद थे।  लगभग 200 लोगों का जमाव वहाँ मौजुद था। चूंकि ये एक पूर्वनियोजित अपराध है इस आधार पर आईपीसी की धारा 120 भी अपराधियों पर लगाई जाए।
  2. दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि इतने बड़े जमाव में किसी ने भी उत्पीड़ित युगल के बचाव का कोई भी प्रयास नही किया। पुलिस ने यह भी जानकारी दी कि पुलिस को गुमराह कर अन्य स्थान पर भेजा गया। जिससे यह साफ जाहिर है कि पुलिस के कार्य में बाधा डाली गई। यह भी की पुलिस पर पथराव किया गया, लाठियां बरसाई गई व रास्ते अवरोधित किए गए।
  3. उत्पीड़ित का मेडिकल जांच कर रिपोर्ट तो दी गई परंतु चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध नही कराई गई। लड़की के हाथों पर तथा कंधो, पीठ पर घाव व चोट के निशान थे।
  4. बाल छोटे-छोटे काटकर युगल को विद्रुप किया गया। जमाव ने दोनों पर इतना कहर बरसाया कि उत्पीडिता ने कहा कि पुलिस समय पर ना पहुँचती तो यह पूरा जमाव उसका बलात्कार कर देता व लड़के को मार देता। इसकी दहशत उत्पीडिता के मन पर इतनी गहरी है कि जब तक इसे चिकित्सकीय सहायता नहीं प्रदान होती। इस दहशत से उभरी नहीं सकती।
  5. उत्पीड़िता को पुलिस ने उसके परिजनों को सौप दिया परन्तु उस परिवार के संरक्षण की आवश्यकता है क्योंकि चढ़ोतरे के डर से वे दहशत और दबाव में है। ऐसे माहौल से उत्पीड़िता को निकाल कर उसकी सुरक्षित पुनर्वास की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  6. यह मामला चूंकि युगल का है इसलिए उत्पीड़ित युगल को उनकी इच्छा अनुसार सुरक्षित पुनर्वास उपलब्ध कराया जाए और मुआवजा दिया जाए।
  7. सराड़ा क्षेत्र के संबधित समुदाय के मुखियाओं को पाबंद किया जाए ताकि वे समुदाय या किसी भी नागरिक पर असंवैधानिक, अमानवीय और कानूनी फरमान और कार्यवाही न करें। यह भी कि वे प्रत्यक्ष रुप से किसी उत्पीड़न या गैर कानूनी कार्य के लिए लोगों को प्रोत्साहित न करें। पुलिस यह पाबंदी तत्काल रुप से करे ताकि उस स्थान और समुदाय में पसरे दहशत से लोग मुक्त हो पाए और भविष्य में ऐसी घटना करने की कोई हिम्मत न कर सकें।
  8. सभी अपराधियों को तुरंत गैर-जमानती धाराओं के तहत गिरफ्तार किया जाए।
  9. तथ्यान्वेषण टीम जब सराड़ा थाने 23.07.2012 को देर शाम पहुँची तो उसने यह पाया कि जिस पुलिस थाने की परिसीमा में एक दिन पहले महिला पर इतना बर्बर जुर्म हुआ हो वहाँ एक भी महिला पुलिस कांस्टेबल तैनात नही थी। यह मामला शांत होने तक वहाँ महिला पुलिस कांस्टेबल तैनात की जाए।
  10. कोलर गांव और उसके आसपास के गांवों में समुदाय को इस बर्बर मानसिकता से उबरने के लिए कुछ सकारात्मक पहल की जाए ताकि आगे ऐसी किसी भी अमानवीय घटना का दोहराव न हो।

राजस्थान में प्रेमी युगलों पर बढ़ रही हिंसा के मद्देनजर कुछ ठोस कानून तथा निर्वाण व्यवस्था हो ताकि उन्हें सुरक्षा, चिकित्सा और पुर्नवास हो। इस तरह की व्यवस्था संपूर्ण देश में लागू हो।

महोदया हमें आपसे सहयोग की आशा है…

आपके भवदीय

प्रज्ञा जोशी         उषा चौधरी             डॉ. सुधा चौधरी         लोकेश गुर्जर

पीयूसीएल          विकल्प संस्थान         राज्य सचिव एपवा       एडवोकेट