Aadiwasi Moolwasi Astitva Raksha Manch has called for a massive march to Ranchi against Displacement, Illegal Looting of Resources, Land grab in Nagdi Village and Arrest of Dayamani Barla.
All are requested to join hand and participate in heavy numbers and make this march a success.

Date: 15th Dec. 2012
Time and Venue: 12pm on wards
march to Rajbhawan

Organizer:
Aadiwasi Moolvasi Astitva Raksha Manch
Block Committees: Karra, Torpa, Raniya, Kamdara

15 दिसम्बर को रांची चलें! झारखंड हमारा है………..! कंपनियों की जागीर नहीं………!!
इतिहास गवाह है- सांप-बिच्छू, सिंह-भालू से लड़ कर हमारे पूर्वजों ने इस धरती को आबाद किया है। अपने लहू से इस राज्य को सींचा है। हमारा परम कर्तव्य है- इस इतिहास को आगे बढ़ाना, विकसित और संरक्षित करना। हमारी लड़ाई न सिर्फ जंगल-जमीन बचाने की लड़ाई है, बल्कि झारखण्ड की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, पर्यावरण के साथ गौरवशाली इतिहास, पहचान और अस्तित्व को बचाने का संघर्ष भी है। आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच इस विरासत की हिफाजत के लिए दृढ़ संकल्प है। राज्य बनने के बाद सरकार ने 104 देशी-विदेशी कंपनियों के साथ एम. ओ. यू. किया। इसमें मित्तल कंपनी और इस्पात इंडस्ट्री को 2006 में तत्कालीन सरकार रांची जिला के कर्रा प्रखण्ड के गांवों को हटाकर 12 मिलियन टन का स्टील करखाना बैठाने का इजाजत दिया। उस वक्त जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए ’’अपने पूर्वजों की एक इंच जमीन नहीं देने’’ का नारा जमीन बचाओ संगठन के बैनर तले से बुलंद हुआ। कर्रा प्रखण्ड के गांवों से उठा आवाज, वर्तमान खूँटी जिला के तोरपा और रनिया प्रखंड सहित गुमला जिला के कमडरा प्रखंड के खेत-खलिहानों में गूंजने लगा। जमीन बचाओ संगठन से लेकर आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के सफर का अपना इतिहास है। मंच ने लोकतांत्रिक-अहिंसात्मक जनशक्ति को संघ्र्ष का हथियार बनाया और इसी के साथ आगे बढ़ने की कोशिश की। परिणाम भी सामने है- हम लोगों ने इस इलाके को उजड़ने से बचा लिया।
आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच संघर्ष के मैदान में हर परिस्थितियों और कठिनाईयों से जूझते हुए अपने जिम्मेवारियों के साथ आगे बढ़ता रहा और सबके दिलों में जगह बनाया। दस्तावेज बताते है कि इस इलाके में मित्तल कंपनी और इस्पात इंडस्ट्री, गोंविदपुर क्षेत्र में 8000 एकड़ जमीन में स्टील प्लांट लगाने की योजना बनायी थी। इन उद्योगपतियों के लिए पानी की व्यवस्था के लिए कारो नदी में रेहड़गड़ा के पास डैम बनाने की योजना थी। इन उद्योगों को पानी की कमी न हो, इसके लिए छाता नदी में भी डैम बनाने की योजना थी। इन परियोजनाओं से गांव के गांव उजड़ते। अतः इसे रोकने के लिए मंच को एक-एक व्यक्ति का प्यार और सहयोग मिला। यही कारण है कि आज भी वहाँ लहलहाती हरियाली उसी रूप में है, जैसा की हमारे पूर्वजों ने हमें सौंपा था।

आप लोगों को याद होगा कि कैसे कंपनी और सरकार के दलालों ने ’’साम-दाम-दण्ड-भेद’’ की नीति अपना कर हमारे संघर्ष को दबाना चाहते थे। दिन-रात मौत की धमकियां दी जाती थी- ’’गांव-गांव में बैठक करना छोड़ दो, नही तो इतनी गोलियां मारेगें की शव का शिनाख्त भी नहीं हो पाएगा।’’ इसके बावजूद हम लोगों का कदम नहीं रुका। वे फिर धमकाते थे-’’कंपनी के खिलाफ गांव वालों को भड़काना नहीं छोड़ोगे तो लोगों के बीच से बैठक से ही उठा लेगें।’’ साथियों! हर धमकी और चुनौती हमारे मनोबल को अपनी धरती और राज्य के जिम्मेवारियों के प्रति और मजबूती देता गया। हर संकट में हमने अपने को और मजबूत करना सीखा, और यही ताकत हमें जीत के मंजिल तक पहुँचाया है। यही हमारी पूँजी है, इस पूँजी को और बढ़ाने की जरूरत है।
हम लोगों ने भाषा-संस्कृति और इतिहास को विकसीत करने के लिए प्रकृति-पर्व करम और सरहुल सामूहिक रूप से मनाते आ रहे है। बिरसा मुंडा की जयंती हर साल 15 नवबंर को मनाते आ रहे हैं। झारखण्ड के शहीदों- सिदो-कान्हू के हूल तथा बिरसा मुंडा के उलगुलान एवं विस्थापन के खिलाफ, संगठन के संघर्ष को याद करते हुए 29-30 जून को हर साल संकल्प सह शहादत दिवस मनाते आ रहे है।

हम लोगों ने संकल्प लिया है-
(1) हम अपने पूर्वजों की एक इंच भी जमीन नहीं देगें।
(2) राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ मंच निरंतर संघर्ष करेगा।
(3) हम अपनी भाषा, संस्कृति और इतिहास की रक्षा हर हाल में करेंगे।
(4) कृषि विकास के लिए कोयल नदी, कारो नदी और छाता नदी के पानी को किसानों के खेतों में लिफ्ट इरिगेशन और पाईप लाईन द्वारा पहुँचाने के लिए सरकार से मांग करेंगे।
(5) जंगल और पर्यावरण की रक्षा के लिए हम प्रतिबद्ध हैं।
(6) शिक्षा व्यवस्था को ठीक करने के लिए हम लोग प्रयास करेगें।

साथियों! विभिन्न परिस्थितियों ने हमें एक दूसरे से अलग करने का प्रयास किया। लेकिन हमारी एकता और एकजुटता को किसी ने तोड़ नहीं सका। यही हमारी ताकत है। इस ताकत को बनाये रखने की जरूरत है। अलग राज्य तो मिला लेकिन आदिवासी एवं मूलवासियों के जंगल-जमीन-नदी-पहाड़ की रक्षा की चिंता किसी को नहीं है। इसलिए राज्य को हम लोगों को ही नया दिशा देना होगा। इसी संकल्प के साथ हमारा संघर्ष जारी रहेगा। कोयल नदी, छाता नदी और कारो नदी का बहता पानी हमारे संघर्ष का इतिहास बयान करता है। इसे हमेशा बहने दो।
आज जरुरत है हमें अपनी एकता व एकजुटता के साथ राज्य की दमनकारी नीति एवं कारपोरेट लूट के खिलाफ 15 दिसंबर को राँची में आयोजित विशाल प्रदर्शन में शामिल हों…!

निवेदक : आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच प्रखण्ड समितियाँ : कर्रा , तोरपा , रनिया , कमडरा