jUNE 13, 2013, Prabhat Khabar

ये है हकीकत..

बंध्याकरण पर दबाव नहीं
बंध्याकरण शिविरों में महिलाएं दबाव में नहीं आतीं. वे अपनी मरजी से आती हैं. देश में कुछ ऐसी जगहें हो सकती हैं, जहां इस तरह के मामले हों, पर सब जगह ऐसा नहीं है.
एसके सिकदर, संचालक, जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमपिछले कुछ समय से महिलाओं के बंध्याकरण से जुड.ी खबरें आती रही हैं. सबसे दुखद पहलू यह है कि गरीब महिलाएं थोडे. पैसे के लिए बंध्याकरण करवाती हैं. यह भी खबर आती है कि डॉक्टर बिना किसी सुविधा के ही ऑपरेशन करते हैं. जंग लगे चिकित्सीय उपकरण से भी ऑपरेशन करने के मामले सामने आये हैं. इससे महिला के इंफेक्शन होने के खतरे बढ. जाते हैं. कई बार महिलाओं की जान भी चली जाती है.भारत में एक साल में 46 लाख महिलाओं का बंध्याकरण

ये है हकीकत..बंध्याकरण पर दबाव नहीं

बंध्याकरण शिविरों में महिलाएं दबाव में नहीं आतीं. वे अपनी मरजी से आती हैं. देश में कुछ ऐसी जगहें हो सकती हैं, जहां इस तरह के मामले हों, पर सब जगह ऐसा नहीं है.

एसके सिकदर, संचालक, जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमबिना किसी सुविधा के ऑपरेशन

यह एक साई है कि डॉक्टर बिना किसी सुविधा के ही ऑपरेशन करते हैं. ऑपरेशन के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले उपकरण पुराने और गंदे होते हैं. कई बार डॉक्टर बिना ऑपरेशन थियेटर के ही सामान्य टेबल पर ऑपरेशन करते हैं.बंध्याकरण के लिए कतार में खड.ी महिलाएं.पिछले कुछ समय से महिलाओं के बंध्याकरण से जुड.ी खबरें आती रही हैं. सबसे दुखद पहलू यह है कि गरीब महिलाएं थोडे. पैसे के लिए बंध्याकरण करवाती हैं. यह भी खबर आती है कि डॉक्टर बिना किसी सुविधा के ही ऑपरेशन करते हैं. जंग लगे चिकित्सीय उपकरण से भी ऑपरेशन करने के मामले सामने आये हैं. इससे महिला के इंफेक्शन होने के खतरे बढ. जाते हैं. कई बार महिलाओं की जान भी चली जाती है.सेंट्रल डेस्क

जब भी भारत में परिवार नियोजन की बात उठती है, तब महिलाएं ही सबसे आगे होती हैं. यह जानना महत्वपूर्ण है कि दुनियाभर में होने वाले महिला बंध्याकरणों में भारत की 37 प्रतिशत महिलाएं होती हैं. पोपुलेशन फाउंडेशन की संयुक्त निदेशक सोना शर्मा के अनुसार, बंध्याकरण मुहिम में महिलाएं ही निशाने पर होती हैं, क्योंकि भारतीय समाज में पुरुषों का आधिपत्य है. पुरुष इस बात से डरते हैं कि वे ऑपरेशन से कमजोर हो जायेंगे या वे अपनी र्मदाना ताकत खो देंगे. बंध्याकरण कराने वाली महिलाओं को सरकार द्वारा दिये जाने वाले पैसे और साथ ही डॉक्टरों को भी इसके लिए अच्छी रकम दिये जाने के कारण महिलाओं के बंध्याकरण में तेजी आयी है. पिछले साल 46 लाख महिलाओं का बंध्याकरण किया गया. इनमें से अधिकांश महिलाओं ने पैसे के लिए बंध्याकरण करवाया. जबकि पिछले साल होने वाले कुल बंध्याकरण में महज चार प्रतिशत ही पुरुष थे. नयी दिल्ली स्थित ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के ‘रिप्रोडक्टिव राइट्स’ की डायरेक्टर केरी मैकब्रूम के अनुसार, इससे समझा जा सकता है कि भारत में महिलाओं की क्या स्थिति है, उन्हें अपने प्रजनन संबंधी अधिकारों पर भी नियंत्रण नहीं है. वह कहती हैं महिलाएं आसानी से बलि का बकरा बनायी जाती हैं, चाहे इसके लिए सरकारी अधिकारी जिम्मेदार हों या फिर उनके पति. संयुक्त राष्ट्र के डाटा के अनुसार, प्रजनन पर नियंत्रण करने के लिए उपाय करने वाले 49 प्रतिशत दंपत्तियों में तीन चौथाई महिलाएं ही बंध्याकरण के लिए आगे आती हैं.

कमाई का जरिया

जब भी परिवार नियोजन के लिए बंध्याकरण शिविर लगाये जाते हैं, वहां महिलाएं कतार में खड.ी रहती हैं. डॉक्टर बस उन्हें एनीमिया टेस्ट के लिए बोलते हैं. इसके बाद डॉक्टर बड.ी तेजी से ऑपरेशन करते हैं. प्रत्येक ऑपरेशन पर केवल तीन मिनट का समय दिया जाता है. डॉक्टर को अपनी कमाई से मतलब रहता है.

पूरा करना होता है टारगेट

नयी दिल्ली स्थित सेंटर फॉर हेल्थ एंड सोशल जस्टिस के डायरेक्टर अभिजीत दास कहते हैं भारत में बंध्याकरण शिविरों में आने वाली अधिकांश महिलाएं पैसे की लालच में आती हैं. स्वास्थ्य अधिकारियों को भी अपना टारगेट पूरा करना होता है. दास का मानना है कि भारत में परिवार नियोजन एक कोटा तंत्र बन गया है. यही कारण है कि चीन के बाद भारत में परिवार नियोजन के लिए अपनाये जाने वाले उपाय सबसे खराब हैं. हमें यह जानना चाहिए कि सरकार ने 1996 में ही बंध्याकरण के लिए टारगेट पूरी करने जैसी नीति को छोड. दिया था. पर आज भी अधिकांश राज्यों में पहले वाली ही स्थिति है. वर्ष के पहले कुछ महीनों को तो ‘बंध्याकरण सीजन’ कहा जाता है. यह सब इसलिए कि 31 मार्च को वित्तीय वर्ष समाप्त होने से पहले बंध्याकरण के लिए निर्धारित लक्ष्य को पूरा किया जा सके. स्वास्थ्यकर्मियों पर बंध्याकरण के टारगेट को पूरा करने का दबाव भी रहता है.

‘ब्लूमबर्ग’ में सर्वप्रथम प्रकाशितझारखंड

राज्य में 29 प्रतिशत महिलाएं परिवार नियोजन के लिए बंध्याकरण करवाती हैं. जबकि ग्रामीण इलाकों में नसबंदी कराने वाले पुरुषों की संख्या 0.4 प्रतिशत और शहरी इलाकों में यह 0.6 प्रतिशत है.बिहार

प्रत्येक वर्ष साढे. छह लाख महिलाओं का बंध्याकरण जबकि नसबंदी कराने वाले पुरुषों की संख्या महज 12 हजार ही है. बिहार में इस साल 13 हजार से अधिक महिला बंध्याकरण शिविर लगाये जायेंगे