सुनील कुमार नरेन्द्र मोदी 13 साल गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के बाद आज प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हो चुके हैं। इस पद पर आसीन होने के लिए उनकी कट्टर हिन्दुत्वा सोच ने मदद की। इसी सोच के कारण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर एस एस) ने अपना एजेंडा लागू करने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्तिनरेन्द्र मोदी को माना और उनके नाम पर प्रधानमंत्री पद के लिए मुहर लगा दी। नरेन्द्र मोदी को कट्टर हिन्दुत्व का तमगा गुजरात दंगो से मिला। उसके बाद सोहराबुद्दीन, इशरत जहां फर्जी एनकाउंटर, अक्षरधाम पर हमले, हिरेन पांड्या केस हुआ जिसमें कि बेकसूर मुसलमानों को फंसाया गया। इन तेरह सालों में मोदी सीढ़ियां चढ़ते हुए प्रधानमंत्री बन गये। सीढ़ियां चढ़ने के लिएएक विशेष समुदाय के लोगों की कुर्बानियां ली गयीं, उनके घर-परिवार बर्बाद कर दिये गये। मोदी के नेतृत्व में जिस दिन (16 मई) बीजेपी को पहली बार पूर्ण बहुमत मिल रहा था उसी दिन भारत के ‘सर्वोच्च न्यायालय’ (सुप्रीम कोर्ट) ने अक्षरधाम केस में फैसला सुनाया और सभी 6 अभियुक्तों को बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने मोदी के सुशासन की पोल खोल दी। मोदी केमुख्यमंत्री व गृहमंत्री रहते हुए इन 6 लोगों को इस अक्षरधाम के फर्जी केस में फंसाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पोटा की सुनवाई करते वक्त यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस कानून में मानवाधिकारों के उल्लंघन और पुलिस को दी गई ताकत का बेजा इस्तेमाल कियागया। आगे सुप्रीम कोर्ट कहता है कि गृहमंत्री ने विवेक से काम नहीं किया और बिना सोचे समझे अभियुक्तों पर पोटा के तहत मुकदमा चलाए जाने की इजाजत दी थी जो कि गलत है। दुर्भाग्य है कि 11 सालों तक छह परिवारों को इतना बड़ा कष्ट सहना पड़ा, घर बर्बाद हो गये, बच्चों की पढ़ाई खत्म होगई लेकिन वह मीडिया के लिए खबर नहीं बन पाया। मीडिया मोदी की सुशासन और संसेक्स की उछाल बताने में लगी हुई थी उसे मोदी के कुशासन के सबूत दिखाई नहीं दे रहे थे। यही कारण है कि समाज के एक तबके में मोदी कीे छवि क्रूर शासक जैसी है। मीडिया द्वारा इस छवि को बदलने की भी कोशिश की जा रही है। जब वह संसद भवन के सेंट्रल हॉल में भावुक हुए तो वह मीडिया के लिए पहला समाचार बना, सभी न्यूज पेपर के पहले पन्ने पर इस तस्वीर को छापा गया।इसी तरह गुजरात विधान सभा से विदाई का समय हो या मां से मिलने का समय इन तस्वीरों को प्रमुखता से दिखाकर यह एहसास कराया जाता है कि मोदी के पास भी दिल है वह भी भावुक होते हैं वह कट्टर नहीं है। गांधी नगर अक्षरधाम मंदिर पर 24 सितम्बर, 2002 को ‘हमला’ हुआ था जिसमें 34 लोगों की मौत हो गई थी। उस समय उप पुलिस अधीक्षक गिरीश सिंघल थे जिन्होंने अक्षरधाम मंदिर के ‘हमलावरांे’ को मारकर सुर्खियां बटोरी थीं। अक्षरधाम ‘हमले’ के एक साल बाद तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुईतो इसकी जांच की कमान सिंघल को सौपी गई। सिंघल ने 24 घंटे के अन्दर ही 6 लोगों को गिरफ्तार करके मामले सुलझाने का दावा किया। सिंघल के जुटाये हुए साक्ष्य के आधार पर 6 लोगों को गुजरात की अदालत ने सजा (3 को मृत्यु दंड, 1 को आजीवन कारवास, 2 को 10 साल की सजा, 1 को पांचकी सजा) भी सुना दी। अक्षरधाम ‘हमलावरों’ के पास से एक पत्र मिला था जिस पर कोई दाग-धब्बा नहीं था जब कि मारे गये ‘हमलावरों’ की लाशें खून और मिट्टी में सनी हुयी थीं। इस तरह के साक्ष्य जुटाये थे सिंघल जी ने! सिंघल वही पुलिस ऑफिसर हैं जिसको सीबीआई ने इशरत जहां फर्जी मुठभेड़में गिरफ्तार किया था लेकिन 90 दिन में चार्जशीट प्रस्तुत नहीं कर पाने के कारण जमानत मिल गई और अभी 28 मई को गुजरात सरकार ने उनको राज्य रिजर्व पुलिस में समूह कमांडेट के पद पर बहाल किया है। (सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले के आरोपी आईपीएस अफसर दिनेश एम.एन. कोवसुंधरा सरकार ने बहाल कर दिया है)। सुप्रीम कोर्ट से बरी हुये लोगों की कहानी अब्दूल कयूम दरियापुर इलाके के मस्जिद में मुफ्ती थे। उनके ऊपर ‘फिदायीन को चिट्ठी लिखकर देने और 2002 दंगों का बदला लेने के लिए अहमदाबाद में फिदायीन को शरण देने व हैदाराबाद के कुछ लोगों के साथ मिलकर हमले के लिए जगह तलाशने का आरोप लगाया गया था। गुजरात कीअदालत ने इस आरोप को सही मानते हुए उन्हें मौत की सजा सुनाई थी। कयूम कहते हैं कि ‘‘17 अगस्त, 2003 को हमें क्राइम ब्रांच ले जाया गया और हरेन पांड्या और अक्षरधाम मंदिर हमले के बारे में बताया गया। हमें गुनाह कबूल करने के लिए करंट लगाया गया, बेड़ि़यों से बांधकर डंडो से पिटाईकी गई। हमें गुनाह कबूल करने से इनकार करने पर जब तक मारा जाता रहा जब तक कि हम बेहोश नहीं हो जाते, होश मंे आने पर दुबारा वही प्रक्रिया अपनाई जाती थी। एक दिन, रात में हमें कोतरपुर (इश्रत जहां और उसके तीन दोस्तों को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया था) ले जाया गया और मेरेआस-पास पांच गोलियां चलाई गई। मुझे लगा कि अगर मैं ‘गुनाह’ नहीं कबूला तो एनकाउंटर कर दिया जायेगा।’’ कयूम कहते हैं कि ‘‘हमने 11 साल जेल में गुजारे, परिवार बर्बाद हो गया। मुझे फांसी की सजा हुई तो अखबारों ने बड़े-बड़े फोटो छापे लेकिन जब हम रिहा हुए तो इसकी खबर कुछअखबारों और चैनलों ने ही दिखायी।’’ कयूम की मुलाकात जेल में कभी-कभी पुलिस अफसर सिंघल (इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ में सीबी आई ने गिरफ्तार किया था) से हो जाया करती थी तो एक बार मैंने सिंघल से पूछा कि ‘‘तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? सिंघल के पास कोई जवाब नहीं था।’’ कयूमअपनी गिरफ्तारी से दो दिन पहले 15 अगस्त 2003 को मस्जिद में तकरीर दी थी कि ‘‘आजाद भारत में मुसलमानों का उतना ही हक है, जितना किसी और का।’’ कयूम के पिता का इंतकाल हो चुका है और अब उनका परिवार उस घर में भी नहीं रहता जिसमें वो 11 साल पहले रहा करते थे। मोहम्मद सलीम के ऊपर आरोप था कि वह सऊदी अरब में भारतीय मुसलमानों को इकट्ठा करके 2002 गोधरा दंगे और अन्य भारत विरोधी वीडियो दिखाते थे। पैसा इकट्ठा कर अक्षरधाम हमले के लिए फाइनेंस किया था। सलीम को आजीवन करावास की सजा सुनाई गई थी। सलीम की मां मुमताजबानो को सलीम की गिरफ्तारी के बाद हार्ट अटैक हुआ और लकवा मार दिया। अखबार में सलीम के नाम के साथ आतंकवादी शब्द देखते ही वह पूरे दिन रोती रहती हैं। पहले वह अपने बेटे सलीम की प्रशंसा करती थकती नहीं थीं। सलीम ने सऊदी अरब जाकर दर्जी का काम करके पैसा कमाया औरअपनी दो बहनों की शादी की, अहमदाबाद में मकान खरीदा, अपने बच्चे जुबैद को इंग्लिश मीडियम में दाखिला दिलाया। सलीम छुटियां खत्म कर सऊदी अरब वापस जाने की तैयारियां कर रहे थे। मां ने खीर बनाई थी तभी घर के दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई और वो सलीम को बुलाकर ले गयाउसके 11 साल बाद सलीम अपने परिवार के पास वापस लौटा है। सलीम कहते हैं कि ‘‘मुझे क्राइम ब्रांच ले जाने के बाद पुलिस ने मुझसे पूछा कि मैं सऊदी अरब में क्या करता हूं, मेरे दोस्त कौन-कौन हैं? मुझे पहले बताया गया कि यह जांच मेरे पासपोर्ट में गड़बड़ी की वजह से हो रहा है फिर मुझेमारना शुरू किया गया, मुझे इल्म नहीं था कि मुझे क्यों मारा जा रहा है। अगर मेरा नाम सुरेश, रमेश या महेश होता तो मेरे साथ यह कभी नहीं होता। हमें 29 दिन तक अवैध हिरासत में रखा गया। क्राइम ब्रांच में 400-500 डंडे मेरे तलवे पर मारते थे मेरी पांव की उंगली फ्रैक्चर हो गयीं। आज भी मेरेपांव कांपते हैं पैरों में जलन होती है, मेरे कूल्हे पर आज भी 11 साल पुरानी मार के निशान मौजूद हैं। एक सीनियर अफसर ने मुझे बुलाया और पूछा कि सलीम, कौन से केस में जेल जाएगा? हरेन पंड्या, अक्षरधाम या 2002 के दंगे में। मुझे इन तीनों के बारे में कुछ ज्यादा पता नहीं था, मैं 1990 सेसऊदी अरब में था और जब घर आता तब इनके बारे में कभी बात होती। मेरे पास मार खाने की बिल्कुल ताकत नहीं बची थी और मैं जैसा वह कहते वैसा करता था।’’ भविष्य के बारे में सलीम बताते हैं कि ‘‘मेरा मकान बिक गया, छोटे भाई को परिवार चलाने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी, मेरे बच्चेअंग्रेजी स्कूल से उर्दू स्कूल में आ गए, अम्मी बिस्तर पर हैं। मेरे पास वक्त बहुत कम है कि मैं अपनी बिखरी हुई जिंदगी समेट सकूं। अहमदाबाद में अब एक छोटी सी दुकान किराये पर लेकर वापस सिलाई का काम शुैरू करूंगा, दुनिया बहुत आगे बढ़ गई है, मैं और मेरे बच्चे बहुत पीछे रह गए।’’गिरफ्तारी की बात पर बताते हैं कि ‘‘2002 दंगों के बाद एक रिलीफ कैंप में अनाज और पानी की मदद करने के लिए 13,000 रुपए ज़कात (दान) के तौर पर दिए थे शायद उसी से मैं पुलिस के नजर में आ गया।’’ अब्दुल मियां कादरी दरियापुर इलाके की एक मस्जिद में मौलाना हैं, उन पर आरोप था कि वह कय्यूम भाई की चिट्ठी ‘फिदायनों’ तक पहुंचाई थी। इस अपराध में गुजरात की अदालत ने उन्हें 10 साल की सजा सुनाई थी। अब्दुल ंिमयां बताते हैं कि ‘‘कोर्ट में पेश करने से 13 दिन पहले 17 अगस्त, 2013 की उनकी गिरफ्तारी हुई थी। हमें पकड़ने के बाद एक कमरे में बिठाया गया कुछ देर बाद एक अधिकारी मुझसे इधर-उधर की बात करने लगा। मुझे लगा कि वह शायद मुझसे कोई जानकारी चाहते हैं। अधिकारी ने मुझसे पूछा अक्षरधाम हमले के बारे में क्या जानते हो? उस समय ऐसा लगामानो मेरे पांव के नीचे जमीन फट गई!’’ 29 अगस्त, 2003 को जुमे के दिन हमें मुंह पर काले कपड़े बांधकर पत्रकारों के बीच खड़ा कर दिया गया। वह मंजर देख कर मुझ पर कयामत टूट पड़ी, घर वालों पर इसके बाद क्या बीतेगी इस ख्याल से मेरे रोंगटे खड़े हो गए। अब्दुल मियां आगे कहते हैं कि‘‘हम वतन के वफादार आज भी हैं और हमेशा रहेंगे। हमें भारत के कानून पर यकीन था। हाईकोर्ट से इंसाफ नहीं मिला पर सुप्रीम कोर्ट से मिलेगा यह यकीन था। लेकिन मेरा हुकूमत पर से भरोसा उठ गया है क्योंकि यहां 100 में से 90 प्रतिशत मामलों में बेगुनाहों को अंदर कर दिया जाता है। जेल मेंमैं देख कर आया हूं कई मासूम आज भी जेल में कैद हैं। उन्हें तुरंत बाहर निकालना चाहिए। गलत केस में लोगों को अंदर कर देने से दहशतगर्दी बढ़ती है।’’ अब्दुल मियां पूछते हैं कि ‘‘11 साल बाद हम बेकसूर करार हो चुके हैं लेकिन हमारा गुज़रा वक्त कौन लौटा सकता है? मैंने आज तक अक्षरधाममंदिर नहीं देखा। अपने ऊपर बैठे लोगों को खुश करने या उनके आदेश से पुलिस वालों ने हमारी और हमारे घर वालों की जिन्दगी की खुशियां लूट लीं।’’ आदम भाई अजमेरी को गुजरात की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। आदम बताते हैं कि ‘‘8 अगस्त 2003 को रात के करीब डेढ़ बजे आदम अजमेरी अपने भाई के ऑटो गैराज के पास दोस्तों के साथ बातचीत कर रहे थे। चार लोग मारूति जेन में आये और आकर पूछे कि तुम में से आदम कौनहै? पहचान होते ही बोले कि तुम को बड़े साहब ने क्राइम ब्रांच बुलाया है। पुलिस से डर लगता है इसलिए थोड़ा घबराते हुए मैं उनके साथ चला गया। रात को ले जाकर मुझे एक अफसर के सामने बिठा दिया गया। अफसर ने पूछा क्या तुम मुझे जानते हो? मैंने कहा नहीं। अफसर बोला की मेरा नाम डीजीवंजारा है। वंजारा ने पूछा कि तुम हरेन पंड्या के बारे में क्या जानते हो? मैंने कहा कि उनके कत्ल के बारे में अखबार में पढ़ा है। वंजारा ने दुबारा पूछा कि तुम टिफिन बम ब्लास्ट के बारे में क्या जानते हो? मैंने कहा कुछ नहीं। अगला प्रश्न था कि अक्षरधाम मंदिर हमले से तुम्हारा क्या ताल्लुक है? मैंनेकहा कुछ नहीं। मेरे यह कहते ही वंजारा ने कहा कि डंडा पार्टी को बुलाओ। वह 20 दिन तक मुझे दिन-रात पीटते जब तक मैं बेहोश न हो जाऊं। मुझे कोर्ट में हाजिर करने से पहले धमकाया गया कि मैंने अगर कोर्ट में मंुह खोला या वकील करने की कोशिश की तो परिवार को मार देेंगे। मुझे कहा गयाजहां कहा जाए हस्ताक्षर कर देना। मेरी बीबी और बच्चों को सीसीटीवी कैमरे में क्राइम ब्रांच में बैठे हुए दिखाया गया।’’ उनकी बेटी शबाना आदम अजमेरी दरियापुर के म्युनिसिपल स्कूल में छठी क्लास की छात्रा है। शबाना का सपना है वकील बनने का। वह अपने मां से कहती हैं कि ‘‘मैं वकील बन करआप लोगों को बचाऊंगी’’। आदम अब दस बाई दस के कमरे में अपने बीबी और बच्चों के साथ रह रहे हैं। वह अभी भी नाम बताने से पहले अपना कैदी नम्बर बोल जाते हैं। वह कहते हैं कि ‘‘अखबारों में बड़े-बड़े फोटो छपे थे मेरे, जिससे बच्चों का घर से बाहर निकलना बंद हो गया और उनके स्कूल छूटगये। मैं अपने बच्चों से कहता हूं कि मैं नहीं पढ़ पाया क्योंकि हमारे अब्बू के पास पैसे नहीं थे और यह अब अपने बच्चों से बतायेंगे कि हम नहीं पढ़ पाए क्योंकि इनके अब्बू आतंकवाद के झूठे केस में जेल में थे।’’ वह कहते हैं कि जब उनको क्राइम ब्रांच में अवैध रूप से रखा गया था उस समय और 100-150 लोग अलग-अलग कमरों में बंद थे। अजमेरी बताते हैं कि 1998 के चुनाव में मैंने अपने इलाके में बैलेट पेपर की धांधली होते देखी तो रिटर्निंग अफसर से शिकायत की और कोर्ट में एप्लीकेशन भी लगाई, लेकिन उस मामले में कुछ नहीं हुआ। शायद तब से ही मैं पुलिस की नजर में था। अजमेरी, अब्दूल कयूम, सलीम व अब्दुल मियां कादरी के बयानों से लगता है कि आप अपने हक की बात करते हैं, किसी की सहायता करते हैं या किसी गलत काम का विरोध करते हैं तो आप सरकार की नजर में देशद्रोही हैं। आप पर वह सभी अत्याचार किये जायेंगे जो इनके साथ किया गया है। इनलोगों को जिस तरह से पकड़ कर झूठे केसों में फंसाया गया उससे तो यह लगता है कि अक्षरधाम मंदिर, टिफिन बम हो या हरेन पांड्या केस इनके असली गुनाहगारों को छिपाया गया है गलत लोगों को फंसा कर। जिस तरह से कोर्ट ने गुजरात के गृहमंत्री से लेकर सी.जे.एम. तक पर सवाल उठाये हैंउससे लगता है कि शासन-प्रशासन से न्यायपालिका तक एक समुदाय व एक वर्ग के खिलाफ काम करता है। क्या इन बेकसूरों की 11 साल की जिन्दगी कोई लौटा सकता है? उनको इस स्थिति तक पहुंचाने वाले गुनाहगारों को सजा हो सकती है?
It looks likely that Modi will be India‘s next prime minister. But his apologists can’t dismiss the facts about his rule as chief minister of Gujarat Aditya Chakrabortty The Guardian, Monday 7 April 2014 20.00 BST Narendra Modi at a… Continue Reading →
He has had a controversial 12-year record as the chief minister of Gujarat, a state his mentors in RSS proudly flaunt as a Hindutva laboratory where Muslims, Christians and tribals have been systematically persecuted in pursuit of a diabolic agenda… Continue Reading →
NISSIM MANNATHUKKAREN, TheHind, MARCH 22, 2014 The HinduIllustration: Deepak Harichandan When carnage is reduced to numbers and development to just economic growth, real human beings and their tragedies remain forgotten. Empires collapse. Gang leaders/Are strutting about like statesmen. The peoples/Can… Continue Reading →
DIPANKAR GUPTA Feb 1, 2014, 12.04AM IST Rahul Gandhi has finally become the ‘game changer’ he always wanted to be. He may have kicked the ball into his own net, but that is Rahul for you. Catch Manmohan Singh or Narendra… Continue Reading →
By R.B. Sreekumar 07 January, 2014 Countercurrents.org An appeal for initiation of concrete measures for expeditious justice delivery and genuine relief and rehabilitation of 2002 communal riot victims in Gujarat state. Respected Chief Minister Shri Narendra Modi ji, The unequivocal… Continue Reading →
Jean Drèze It is interesting how media reports of Narendra Modi’s rallies differ from the real thing. To see the difference for myself, I attended Narendra Modi’s recent rally in Ranchi. More than 10 days in advance, the rally… Continue Reading →
Narendra Modi, who is running for prime minister, has in a blog provided his first detailed account of the Gujarat riots of 2002 in which more than 1,000 people were killed. Mr Modi’s blog comes a day after a… Continue Reading →
Mukul Sinha December 28, 2013 | within a few months however , mindless violence of 2002 had dealt us another unexpected blow. Innocents were killed…I was shaken to the core.‘Grief’ ,’Sadness’, ‘Misery’, ‘Pain’, ‘Anguish’, ‘Agony’ – mere words could not capture the absolute emptiness… Continue Reading →
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