~अकीला ख़ान

मैं इंसानियत में यकीन कर लूं।
थोड़ा ज़हर और नफरत कम दिखे
 तो यकीन कर लूं।


मैं डर कर सहम गई हूं
कूव्वत – क्लब मिले तो
थोड़ा यकीन कर लूं
किस निगाह से उस
मासूम की नज़र पढ़ लूं।


 उस के सवालों का जवाब किया दूं।
 ख़ून में सने क्यूं लिबास है?


वादी में लाश ही लाश क्यों  है?
चीखें सुन कर भी लोग, क्यों होश
खोते हैं?
अश्क
इतने गरम और लावा से क्यों  है?
दिल यूं पत्थर से क्यों   होते है।


इंसान बंदूक की नोक से दुनिया देखता क्यों है?
निहत्ते
बुज़ुर्ग का कसूर क्या था
जिस गोली ने ली जान
वह शोर क्या
था?


मासूम जब सवाल पूछेगा हमसे

क्या जवाब दोंगे

बोलो, सोचो
क्यों ?  क्यों ?    
इंसान जब वर्दी पहन ले तो
इंसानियत कैसे खोते है

ज़मीन के टुकड़े

इंसानों की लाशों से ज़्यादा क्यों ?
अहम और मुक्कदस होते है??

” یقین “

میں انسانیت میں یقین کر لوں!
تھوڑا زہر و نفرت کم دیکھے
تو یقین کر لوں!
میں ڈر کر سہم گئ ہوں
قوت قلب ملے تو
تھوڑا یقین کر لوں
کسے نگاہ سےاُس
معصوم کی نظر پڑھ لوں!
اس کے سوالوں کا جواب کیا دوں!
خون میں سنے کیوں لباس ہیں؟
وادی میں لاش ہی لاش کیوں ہے؟
چیخیں سن کر بھی لوگ, کیوں سمات کھوتے ہیں
اشک اتنے گرم اور لاوا سے کیوں ہیں؟
دل یوں پتھر سے کیوں ہوتے ہیں!
انسان بندوق کی نوک سے دنیا دیکھتا کیوں ہے؟
نہتے بزرگ کا قصور کیا تھا
جس گولی نے لی جان
وہ شور کیا تھا؟
معصوم جب سوال پوچھے گا
ہم سے کیا جواب دینگے
بولو, سوچو
کیوں؟ کیوں؟
انسان جب ورسی پہن لے تو
انسانیت کیسے کھوتے ہیں
زمین کے ٹکڑے انسانوں کی لاشوں سے
زیادہ,
کیوں؟
اہم اور مقدس ہوتے ہیں؟ عقیلہ خان

~अकीला ख़ान